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युक्त है। विचार करने पर सैयदं ईशाअल्लाह खाँ को प्रोतः तारा अर्थात् शुक्र (असुरों के गुरु), सदलं मिश्र को उषाकाल और लल्लूजी को सुप्रभात मान लेना पड़ेगा । मुं० सदासुखलाल की कोई प्रणीत पुस्तक प्राप्त होने पर उन्हें भी कोई स्थान देना आवश्यक होगा।

महात्मा गोरखनाथ‌

ये प्रसिद्ध मत प्रवर्तक हो गए है। ये मत्स्येंद्र नाथ या मुछंदर नाथ के शिष्य कहलाते हैं और इनके मतावलंबी अभी तक पाए जाते हैं। इनका समय खोज की रिपोर्ट में वि० सं० १४०७ दिया है। इनके बनाए हुए ग्रंथो की संख्या लगभग बीस है, पर इनमे कौन कौन इनकी रचना है और कौन इनके भक्तों की, सो ठीक नहीं कहा जा सकता। इनका समय भी अभी तक निश्चित नहीं है। इनका मंदिर गोरखपुर में है जहाँ ये पूजे जाते हैं। इनका एक ग्रंथ सिष्ट प्रमाण गद्य मे है जिसके कारण ये गद्य के प्रथम लेखक कहे जा सकते है। परन्तु शिष्य जन भी बहुधा अपनी रचनाओ को गुरु के नाम पर प्रसिद्ध करते हैं, इससे यह पद उन्हे देते शंका होती है। उदा०——

पराधीन उपरांति बंधन नाही, सुत्राधीन उपरांति मुकति नाही' 'चाहि उपरांति पाप नाही, अजाहि उपरांति पुनि नाही । सुसबद उपरांति पोस नाही। नारायण उपरांति ईसर नाही।'

गोस्वामी श्रीविठ्ठलनाथजी‌

ये महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी के छोटे पुत्र थे। इनका जन्म पौष शुक्ल ९ सं० १५७२ वि० को चुनार मे हुआ था। यह