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है। अभी तक एक प्रकार से यह मत सर्वग्राह्य है कि खड़ी बोली के जन्मदाता लल्लुजी लाल हैं। परंतु अब यह भी कहना भ्रमोत्पादक और अयुक्त है।

मुंशी सदासुखलाल का कोई अंथ अब तक प्राप्त नहीं है, पर उनका एक लेख भाषासार नामक पुस्तक में संगृहीत है। उसके संग्रहकर्ताओं का कथन है कि वह प्रेमसागर की रचना के बीस पच्चीस वर्ष पहिले का लिखा हुआ है। सैयद इंशाअल्लाह दूसरे गद्य लेखक हैं जिनकी 'रानी केतकी की कहानी' नामक पुस्तक ठेठ हिंदी में प्रेमसागर के कुछ पहिले प्रणीत हुई थी। इन दोनों लेखको ने किसी की आज्ञा से लेखनी नहीं चलाई थी। वे अपनी इच्छा से खड़ी बोली की रचना कर रहे थे। दूसरे लेखक ने अपनी पुस्तक की भूमिका में यो लिखा है कि कोई कहानी ऐसी कहिए कि जिसमें हिंदुवी छुट और किसी बोली की पुट न मिले, तब जाके मेरा जी फूल की कली के रूप खिले, बाहर की बोली और आँवारी कुछ उसके बीच में न हो इस लेखक ने अपना जो आदर्श निश्चित करके लेखनी चलाना अरंभ किया था, उसे अंत तक निबाहा।

पं० लल्लूजीलाल और पं० सदल मिश्च में एक ही समय एक ही मनुष्य की श्रद्धा से भाषा लिखना आरंभ किया। लल्लू जी की भाषा में ब्रज भाषा का बहुत मेल है और वे कृत्रिता का भी पुट अराबर देते चले गए हैं। सद्गल मिश्र की भाषा अधिक पुरमार्जित और इन दोष से मुक्त है। अब इन समसामयिक ग्रंथकारों में किसी एक को जन्मदाता के पद पर प्रतिष्ठित करना अन्याय मात्र होगा। इससे अब इस पद को ही हटा देना नीति-