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तुम किसी बात की चिन्ता अपने मन में मत करो, हम सब यदुबंसियों समेत कृष्ण बलराम को छिन भर में मार हटावेगे।

श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, उस दिन रुक्म तो जरासंध औ सिसुपाल को समझाय बुझाय ढाढ़स बँधाय अपने घर आया औ उन्होंने सात पाँच कर रात गँवाई। भोर होते ही इधर राजा सिसुपाल औ जरासंध तो व्याह का दिन जान बराँत निकालने की धूमधाम में लगे और उधर राजा भीष्मक के यहाँ भी मंगलाचार होने लगे। इसमें रुक्मिनीजी ने उठते ही एक ब्राह्मन के हाथ श्रीकृष्णचंद से कहला भेजा कि कृपानिधान, आज ब्याह का दिन है, दो घड़ी दिन रहे नगर के पूरब देवी का मंदिर हैं जहाँ मैं पूजा करने जाऊँँगी। मेरी लाज तुम्हें है जिसमें रहै सो करियेगा।

आगे पहर एक दिन चढ़े सखी सहेली औ कुटुँब की स्त्रियाँ आईं, विन्होने आतेही पहले तो आँगन में गजमोतियो का चौक पुरवाय, कंचन की जड़ाऊ चौकी बिछवाय, तिसपर रुक्मिनी को बिठाय, सात सोहागिनो से तेल चढ़वाया। पीछे सुगंध उबटन लगाय न्हिलाय धुलाय उसे सोलह सिंगार करवाय बारह आभूषन पहराय ऊपर राता चोला उढ़ाय, बनी बनाये बिठाया। इतने में घढ़ी चार एक दिन पिछला रह गया। उस काल रुक्मिनी बाल, अपनी सब सखी सहेलियों को साथ ले बाजे गाजे से देवी की पूजा करने को चली, तो राजा भीष्मक ने अपने लोग रखवाली को उसके साथ कर दिये।

ये समाचार पाय कि राजकन्या नगर के बाहर देवी पूजने चली है, राजा सिसुपाल ने भी श्रीकृष्णचंद के डर से अपने बड़े