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काम। ये दोनो कपटी कुटिल जहाँ जाते हैं, तहाँ ही उतपात मचाते है। जो तुम अपना भला चाहो तो तुम मुझसे सत्य कहो, ये किसके बुलाए आए।

महाराज, रुक्म ऐसे पिता को धमकाय यहाँ से उठ सात पाँच करता वहाँ गया, जहाँ राजा सिसुपाल औ जरासन्ध अपनी सभा में बैठे थे औ उनसे कहा कि ह्याँ रामकृष्ण आए है तुम अपने सब लोगों को जता दो, जो सावधानी से रहें। इन दोनो भाइयो का नाम सुनतेही, राजा सिसुपोल तो हरिचरित्र का लख व्यवहार, जी हार, करने लगा मनहीं मृन विचार, औ जराजन्ध कहने कि सुनो जहाँ ये दोनो आवे है, तहाँ कुछ न कुछ उपद्रव मचावे हैं। ये महाबली औ कपटी है। इन्होने ब्रज में कंसादि बड़े बड़े राक्षस सहज सुभावही मारे, इन्हें तुम मत जानो बारे। ये कभी किसीसे लड़कर नहीं हारे, श्रीकृष्ण ने सत्रह बेर मेरो दल हना, जब मैं अठारवी बेर चढ़ आया, तब यह भाग पर्वत पै जो चढ़ा, जो मैने उसमें आग लगाई तो यह छलकर द्वारका को चला गया।

याकौ काहू भेद न पायौ। अब ह्याँ करन उपद्रव आयौ॥

है यह छली महा छल करै। कोहू पै नहिं जान्यो परै॥

इससे अब ऐसा कुछ उपाय कीजै, जिससे हम सबों की पत रहै। इतनी बात जब जरासंध ने कही तब रुक्म बोला कि वे क्या वस्तु हैं जिनके लिये तुम इतने भावित हो, विन्हें तो मै भली भाँति से जानता हूँ कि बन बन गाते, नाचते, बेनु बजाते, धेनु चराते, फिरते थे, वे बालक गंवार युद्धविद्या की रीति क्या जाने।