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तिरपनवाँ अध्याय

श्रीशुकदेव मुनि बोले कि महाराज, अब आगे कथा सुनिये कि जब कालयवन को मार मुचकुंद को तार, जरासंध को धोखा दे बलदेवजी को साथ ले, श्रीकृष्णचंद आनंदकंद जी द्वारका में गये तो सब यदुबंसियों के जी में जी आया, औ सारे नगर में सुख छाया। सब चैन आनंद से पुरबासी रहने लगे। इसमें कितने एक दिन पीछे एक दिन कई एक यदुबंसियों ने राजा उग्रसेन से जा कहा कि महाराज, अब बलरामजी का कही विवाह किया चाहिये, क्योकि ये सामर्थ हुए। इतनी बात के सुनतेही राजा उग्रसेन ने एक ब्राह्मण को बुलाय अति समझाय बुझायके कहा कि देवता, तुम कहीं जाकर अच्छा कुल घर देख बलरामजी की सगाई कर आओ। इतना कह रोली, अक्षत, रुपया, नारियल मँगवा उग्रसेनजी ने उस ब्राह्मन को तिलक कर रुपया नारियल दे बिदा किया। वह चलाचला आनर्स देस में राजा रेवत के यहाँ गया और उसकी कन्या रेवती से बलरामजी की सगाई कर लग्न ठहराय उसके ब्राह्मन के हाथ टीका लिवाय, द्वारका में राजा उग्रसेन के पास ले आया, और उसने वहाँ की सब ब्यौरा कह सुनायो। सुनतेही राजा उग्रसेन ने अति प्रसन्न हो उस ब्राह्मन को बुलाय, जो टीका ले आया था, मंगलाचार करवाय टीका लिया, और उसे बहुत सा धन दे बिदा किया। पीछे आप सब यदुबंसियों को साथ ले बड़ी धूमधाम से आनर्स देस में जाय बलरामजी का ब्याह कर लाए।