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अवधी आदि में होने से खड़ी बोली, रेख्ते की बोली या हिंदुवी की कक्षा में नहीं आ सकतीं। तब यदि लल्लूजी खड़ी बोली के गद्य के जन्मदाता कहे जायँ तो यह भी अयुक्त होगा, क्योकि उस पद के लिए और भी कई अधिकारी खड़े है, जिनमें पं॰ सद्ल मिश्र, मुं॰ सदासुखलाल और हकीम इंशाअल्लाखाँ मुख्य हैं। साथ ही यह भी विचारणीय है कि लल्लूजी के प्रेमसागर आदि ग्रंथो के लिखे जाने के लगभग पचास वर्ष अनंतर तक कोई दूसरी उत्तम गद्य पुस्तक नहीं प्रस्तुत हुई। कदाचित् इसी कारण भारतेदुजी मृत हिंदी को जिलानेवाले या आधुनिक हिंदी के जन्मदाता कहे जाते है।

गद्य की भाषा का प्रारंभिक विकास दिखलाने के अनंतर अब लल्लूजी के समय तक के गद्य लेखको का संक्षिप्त जीवन-वृत्तांत उनकी भाषा के उदाहरणों के साथ दिया जायगा।

किसी भाषा का समय निर्णय करना कठिन होता है, क्योकि मनुष्यो के जन्म आदि की तरह किसी दिन या वर्ष में उसकी उत्पत्ति होना नहीं बतलाया जा सकता। पत्येक भाषा अपने से प्राचीनतर भाषा का रूपांतर मात्र होती है, और यह रूपांतर इतने लंबे समय में होता है कि वह समय अनिश्चित रूप में ही कहा जा सकता है। मनुष्य के जन्म का समय घड़ी पल तक में बतलाया जा सकता है, परंतु उसकी अवस्था के किसी रूपांतर का समय निश्चित नहीं हो सकता कि कब बोलने लगा या कब युवा से वृद्ध हुआ। हिंदी का आरंभिक काल आठवीं शताब्दी के साथ आरंभ हुआ माना गया है। बोल-चाल और व्यवहार में हिंदी इससे पहिले ही प्रचलित हो गई होगी, फिर कुछ परिपक होने पर