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अभी अपना सब कटक ले चढ़ धाऊँ औ सब यदुबंसियों समेत मथुरा पुरी को जलाय राम कृष्ण को जीता बाँध लाऊँ, तो मेरा नाम जरासंध, नहीं तो नहीं।

इतना कह उसने तुरंतही चारो ओर के राजाओ को पत्र लिखे कि तुम अपना दल ले ले हमारे पास आओ, हम कंस का पलटा ले यदुबंसियों को निर्वश करेगे। जरासंध का पत्र पाते ही सब देश देश के नरेश अपना अपना दल साथ ले झट चले आये, और यहाँ जरासंध ने भी अपनी सब सेना ठीक ठाक बनाय रक्खी। निदान सब असुरल साथ ले जरासंध ने जिस समै मगध देश से मथुरा पुरी को प्रस्थान किया तिस समैं उसके संग तेईस अक्षौहिनी थी। इक्कीस सहस्र आठ सौ सत्तर रथी, औ इतनेही गजपति, एक लाख नव सहस्त्र साढ़े तीन सौ पैदल, औ छःसठ सहस्र अश्वपति, यह अक्षौहिनी का प्रमाण हैं।

ऐसी तेईस अक्षौहिनी उसके साथ थी औ उनमें जो एक एक राक्षस जैसा बली था सो मैं कहाँ तक वर्नेन करूँ। महाराज जिस काल जरासंध सब असुर सेना साथ ले धौसा दे चला, उस काल दुसो दिसा के दिगपाल लगे थर थर काँपने, औं सब देवता मारे डर के भागने, पृथ्वी न्यारीही बोझ से लगी छोत सी हिलने। निदान कितने एक दिन में चला चला जा पहुँचा औ उसने चारों ओर से मथुरा पुरी को घेर लिया, तब नगरनिवासी अति भय खाये श्रीकृष्ण के पास जा पुकारे कि महाराज, जरासन्ध ने आय चारों ओर से नगर घेरा अब क्या करें औ किधर जायँ।

इतनी बात के सुनतेही हरि कुछ सोच विचार करने लगे, इसमे बलरामजी ने आय प्रभु से कहा कि महाराज, आपने भक्तो