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इतनी आज्ञा पाय मेघपति दंडवत कर राजा इंद्र से बिदा हुआ और जिसने अपने स्थान पर आय बड़े बड़े मेघों को बुलाय के कहा-सुनो, महाराज की आज्ञा है कि तुम अभी जाय ब्रजमंडल को बरस के बहा दो । यह बचन सुन सब मेघ अपने अपने दुल बादल ले ले मेघपति के साथ हो लिये । विसने आते ही ब्रजमंडल को घेर लिया और गरज गरज बड़ी बड़ी बूंदों से लगा मूषलाधार जल बरसाने और उँगली से गिरि को बतावने ।

इतनी कथा कथ श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि महाराज, जब ऐसे चहुँ ओर से घनघोर घटा अखंड जल बरसने लगीं, तब नंद जसोदा समेत सब गोपी ग्वाल बाल भय खाय भींगते थर थर काँपते श्रीकृष्ण के पास जाय पुकारे कि हे कृष्ण, इस महाप्रलय के जल से कैसे बचेंगे, तब तो तुमने इंद्र की पूजा मेट पर्बत पुजवाया, अब बेग उसको बुलाइये जो आय रक्षा करे, नहीं तो क्षन भर में नगर समेत सब डूब मरते हैं। इतनी बात सुन औ सबको भयातुर देख श्रीकृष्णचंद बोले कि तुम अपने जी में किसी बात की चिंता मत करो, गिरिराज अभी आय तुम्हारी रक्षा करते हैं । यो कह गोबर्द्धन को तेज से तपाय अग्नि सम किया औ बायें हाथ की छिंगुली पर उठाय लिया । तिस काल सब ब्रजबासी अपने ढोरों समेत आ उसके नीचे खड़े हुए और श्रीकृष्णचंद को देख देख अजरज कर आपस में कहने लगे।

है कोऊ आदि पुरुष औतारी । देवन हू को देव मुरारी ॥
मोहन मानुष कैसो भाई । अंगुरी पर क्यो गिरि ठहराई ।।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहने लगे कि उधर तो मेघपति अपना दल लिये क्रोध कर मूसला