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छब्बीसवाँ अध्याय

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेव मुनि बोले―

सुरपति की पूजा तजी, करी पर्वत की सेव।
तबहि इंद्र मन कोपि कै, सबै बुलाए देव॥

जब सारे देवता इंद्र के पास गये तब वह विनसे पूछने लगा कि तुम मुझे समझाकर कहो कल ब्रज में पूजा किसकी थी? इस बीच नारद जी आय पहुँचे तो इंद्र से कहने लगे कि सुनो महाराज, तुम्हें सब कोई मानता है पर एक ब्रजवासी नहीं मानते क्योकि नंद के एक बेटा हुआ है, तिसीको कहा सब करते हैं, विन्हीने तुम्हारी पूजा मेट कल सबसे पर्बत पुजवाया। इतनी बात के सुनते ही इंद्र क्रोध कर बोला कि ब्रजवासियों के धन बढ़ा है, इसीसे विन्हें अति गर्व हुआ है।

तप जप यज्ञ तज्यौ ब्रज मेरौ। काल दुद्धि बुलायौ नैरो॥
मानुष कृष्ण देव के मानैं। ताकी बाते सॉची जानैं॥
वह बालक मूरख अज्ञान। बहुबादी राखै अभिमान॥
अब हौ उनको गर्व परिहौं। पशु खोऊँ लक्ष्मी बिन करौं॥

ऐसे बक झक खिजलायकर सुरपति ने मेघपति को बुलाय भेजा, वह सुनते ही डरता कॉपता हाथ जोड़ सनमुख आ खड़ा हुआ, विसे देखते ही इंद्र तेह कर बोला कि तुम अभी अपना सब दल साथ ले जाओ और गोवर्द्धन पर्बत समेत ब्रजमंडल को बरस बहाओ, ऐसा कि कहीं गिरि का चिह्न औ ब्रजवासियों का नाम न रहे।