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494 : प्रेमचंद रचनावली-5
 

गम्। तारीको और रोशनी का मेल सुहानी सुबह होती है, और जीत और हार का मेल सुलह। यह खुशी और गम का मेल एक नए दौर की आवाज है और खुदा से हमारी दुआ है कि यह दौर हमेशा कायम रहे, हममें ऐसे ही हक पर जान देने वाली पाक रूहें पैदा होती रहें, क्योंकि दुनिया ऐसी ही रूहों की हस्ती से कायम है। आपसे हमारी गुजारिश है कि इस जीत के बाद हारने वालों के साथ वहीं बर्ताव कीजिए, जो बहादुर दुश्मन के साथ किया जाना चाहिए। हमारी इस पाक सरजमीन में हारे हुए दुश्मनों को दोस्त समझा जाता था। लड़ाई खत्म होते ही हम जा और गस्से को दिल से निकाल डालते थे, और दिल खोलकर दुश्मन से गले मिल जाते थे। आइए, हम और आप गले मिलकर उस देवी की रूह को खुश करें, जो हमारी सच्ची रहनुमा, तारीकी में सुबह का पैगाम लाने वाली सुफैदी थी। खुदा हमें तौफीक दे कि इस सच्चे शहीद से हम हकपरस्ती और खिदमत का सबक हासिल करें। हाफिजजों के धुप होते ही 'नैनादेवी की जय' की ऐसी श्रद्धा में डूबी हुई ध्वनि उठी कि आकाश तक हिल उठा। फिर हाफिज हलीम की भी जय-जयकार हुई और जुलूस गंगा की तरफ रवाना हो गया। बोर्ड के सभी मेंबर जुलूस के साथ थे। सिर्फ हाफिज म्युनिसिपैलिटी के दफ्तर में जा बैठे और पुलिस के अधिकारियों से कैदियों की रिहाई के लिए परामर्श करने लगे। जिस संग्राम को छ: महीने पहले एक देवी ने आरंभ किया था, उसे आज एक दूसरी देवी ने अपने प्राणों की बलि देकर अंत कर दिया। दस इधर मकीन जनाने जेल में पहुंची, उधर सुखदी, पठानिन और रेणुका की रिहाई की परवाना भी आ गया। उसके साथ हो नैना की हत्या का संवाद भी पहुचा। सुखदा सिर झुकाए मूर्तिवत् बैठी रह गई, मानो अचेत हो गई हो। कितनी महंगी विजय थी । रेणुका ने लंबी सास लेकर कहा-दुनिया में ऐसे-ऐसे आदमी पड़े हुए हैं, जो स्वार्थ के लिए स्त्री की हत्या कर सकते हैं। | सुखदा आवेश में आकर बोली-नैना की उसने हत्या नहीं की अम्मा, यह विजय उस देवी के प्राणों का वरदान है। पठानिन ने आसू पोंछते हुए कहा- मुझे तो यही रोना आता है कि भैया को दु:ख होगा। भाई-बहने में इतनी मोहब्बत मैंने नहीं देखी। जेलर ने आकर सूचना दी- आप लोग तैयार हो जाएं। शाम की गाड़ी से सुखदा, रेणुका और पठानिन, इन महिलाओं को जाना है। देखिए हम लोगों से जो खता हुई हो, उसे मुफ कोजिएगई। किसी ने इसका जवाब न दिया, मानो किसी ने सुना ही नहीं। घर जाने में अब आनद में था। विजय का आनंद भी इस शोक में डूब गया था। सकीना ने सुखदा के कान में कहा-जाने के पहले बाबूजी से मिल लीजिएगा। यह खबर सुनकर न जाने दुश्मनों पर क्या गुजरे? मुझे डर लग रहा है। बालक रेणुकान्त सामने सहन में कीचड़ में फिसलकर गिर गया था और पैरों से जमीन को इस शरारत की सज़ा दे रहा था। साथ-ही-साथ रोता भी जाता था। सकीना और मुवदी