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472:प्रेमचंद रचनावली-5
 

जेलर ने खिसियाकर कहा-पड़ा रहने दो बदमाश को यहीं । कल से इसे बड़ी बेटी दूंगा और तनहाई भी। अगर तब भी ने सीधा हुआ, तो उलटी होगी? इसपः। नमाजोपन निकाल न दें तो नाम नहीं। | एक मिनट में वार्डर, जेलर, सिपाही सब चले गए। कैदियों के भोजन का समय आया, सब-के-सब भोजन पर जा बैठे। मगर काले खां अभी वहीं औंधा पड़ा था। सिर और नाक तथा कानों से खून बह रहा था। अमरकान्त बैठा उसके घावों को पानी से धो रहा था और खुन बंद करने का प्रयास कर रहा था। आत्मशक्ति के इस कल्पनातीत उदाहरण ने उसकी भौतिक बुद्धि को जैसे आक्रांत कर दिया। ऐसी परिस्थिति में क्या वह इस भाति निश्चल और संयमित बैठा रहता? शायदं पहले ही आधात में उसने गा तो प्रतिकार किया होता या नमाज छोड़कर अलग हो जाता। विज्ञान और नीति और देशानुराग की वेदी पर बलिदानों की कमी नहीं। पर यह निश्चल धैर्य ईश्वर-निष्ठा ही का प्रसाद है। | कैदी भोजन करके लौटे। काले खां अब भी वहीं पड़ा हुआ था। सभी ने उसे उठाकर बैरक में पहुंचाया और डॉक्टर को सूचना दी, पर उन्होंने रात को कष्ट उठाने की जरूरत न समझी। वहां और कोई दवा भी न थी। गर्म पानी तक न मयस्सर हो सका। उस बैरक के कैदियों ने रात बैठकर काटी। कई आदमी आमादा थे कि सुबह होते ही जेलर साहब की मरम्मत की जाय। यही न होगा, साल-साल भर की मियाद और बढ़ जाएगी। क्या परवाह | अमरकान्त शांत प्रकृति की आदमी था, पर इस समय वह भी उन्हीं लोगों में मिला हुआ था। रात-भर उसके अंदर पर् और मनुष्य में इंद्व होता रहा। वह जानता था, आ आग से नहीं, पानी से शांत होती है। इंसान कितना ही हैवान हो जाय उसमें कुछ न कुछ आदमीयत रहती ही है। वह आदमीयत अगर जा सकती है, तो ग्लानि से, या पश्चताप से। अमर अकेला होता, तो वह अब भी विचलित न होता, लेकिन सामुहिक आवंश ने उसे भी अस्थिर कर दिया। समूह के साथ हम कितने हो ऐसे अच्छे-बुरे काम कर जाते हैं, जो हम अकेले में कर सकते। और काले खां की दशा जितनी ही खराब होती जाती थी, उतनी ही प्रतिशोध की ज्वाला भी प्रचंड होती जाती थी। एक डाके के कैदी ने कहा-खून पी जाऊंगा, खुन । उसने समझा क्या है। यहीं न होगा, फांसी हो जाएगी? अमरकान्त बोला—उस वक्त क्या समझे थे कि मारे ही डान्नता है । षड्यंत्र रचा गया, आपातकारियों का चुनाव हुआ, उनका कार्य विधान निश्चय किया गया। सफाई की दलीलें सोच निकाली गई। । सहसा एक ठिगने कैदी ने कहा-तुम लोग समझते हो, सवेरे तक उसे खबर नै हो जाएगी? अमर ने पूछा-खबर कैसे होगी? यहां ऐसा कौन है, जो उसे खबर दे दे? | ठिगने कैदी ने दाएं-बाएं आंखें घुमाकर कहा-ख़नर देने वाले न जाने कहां से निकल आते हैं, भैया? किसी के माथे पर तो कुछ लिखी नहीं, कौन जाने हम में से कोई जाकर इत्तिलो कर दे? रोज ही तो लोगों को मुखबिर बनते देखते हो। वही लोग जो अगुआ होते हैं, अवसर पड़ने पर सरकारी गवाह बन जाते हैं। अगर कुछ करना है, तो अभी कर डालो। दिन को वारदात करोगे, सब-के-सव पकड़ लिए जाओगे। पांच-पांच साल की सजा दुक जाएगी।