पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४५८

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458:प्रेमचंद रचनावली-5
 

458 : प्रेमचंद रचनावली-६ मुन्नी ने छाती पर हाथ रखकर कहा-यह क्या करती हो, बहू? वहां तुमसे न रहा जाएगा। सुखदा ने प्रसन्न मुख से कहा-जहां तुम रह सकती हो, वहां मैं भी रह सकती हैं। एक घंटे के बाद जब सुखदा यहां से मुन्नी के साथ चली, तो उसका मन आशा और भय से कांप रहा था, जैसे कोई बालक परीक्षा में सफल होकर अगली कक्षा में गयी हो। तीन पुलिस ने उस पहाड़ी इलाके की घेरा डाल रखा था। सिपाही और सवार चौबीसों घंटे घूमते रहते थे। पांच आदमियों से ज्यादा एक जगह जमा न हो सकते थे। शाम को आठ बजे के बाद कोई घर से निकल न सकता था। पुलिस को इत्तिला दिए बगैर घर में मेहमान को ठहराने को भी मनाही थी। फौजी कानून जारी कर दिया गया था। कितने ही घर जला दिए गए थे और उनके रहने वाले हचूड़ों की भांति वृक्षों के नीचे बाल-बच्चों को लिए पड़े थे। पाठशला में आग लगा दी गई थी और उसकी आधी-आधी काली दीवारें मानो केश खन्ने मातम कर रहा थीं। स्वामी आत्मानन्द बांस की छतरी लगाए अब भी वहां डटे हुए थे। जरा-सा मौका पा ही इधर-उधर से दस-बोस आदमी आकर जमा हो जाते, पर सवारों को आते देखा और गायव सहसा लाला समरकान्त एक गट्ठर पीठ पर लादं मदरसे के सामने आकर खड़े हो , स्वामी ने दौड़कर उनका बिस्तर ले लिया और खाट की फिक्र में दो हैं। गांव- भर में बिजली की तरह खबर दौड़ गई- भैया के बाप आए हैं। हैं तो वृद्ध, मगर अभी टमन हैं। मेल-राहकार से लगते हैं। एक क्षण में बहुत से आदमियों ने आकर घेर लिया। किये के सिर में पट्टी में थी, किसी के हाथ में। कई लंगड़ा रहे थे। शाम हो गई और आज कोई विशेष छुटको न देखकर और सारे इलाके में इंडे के बल से शांति स्थापित करके पुलिस विश्राम कर रही थी। बेचार रात-दिन दौड़ने-दौड़ते अधमरे हो गए थे। गुदड़ ने लाठी टेकते हुए आकर समग्कान्न के चरण छू और बोले- अमर या +7 समाचार तो आपको मिला होगा। आजकल तो पुलिस का धावा है। हाकिम कहता है- चाह आने लगे, हम कहते हैं हमारे पास है ही नहीं, दें कहां से? बहुत-से लोग तो गांव छोड़कर भाग गए। जो हैं, उनकी दसा आप देख ही रहे हैं। मनी बहू को पकड़कर जेल में डाल दिया। आप ऐसे समय में आए कि आपकी कुछ खातिर भी नहीं कर सकते। समरकान्त मदरसे के चबूतरे पर बैठ गए और सिर पर हाथ रखकर सोचने लगे इन गरीबों की क्या सहायता करें? क्रोध की एक ज्वाला-सी उठकर रोम-रोम में व्याप्त हो । पूछा--यहां कोई अफसर भी तो होगा? गूदड़ ने कहा-हां, अफसर तो एक नहीं, पच्चीस हैं जी। सबमें बड़ा अफसर तो वही मियांजी हैं, जो अमर भैया के दोस्त हैं। | "तुम लोगों ने उस लफंगे से पूछा नहीं मारपीट क्यों करते हो, क्या यह भी कानून है? गूदड़ ने सलोनी की मया की ओर देखकर कहा- भैया, कहते तो सब कुछ हैं, जये कोई सुने ! सलीम साहब ने खुद अपने हाथों से इंटर मारे। उनकी बेदर्दी देखकर पुलिस वान्ने