पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४५५

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कर्मभूमि:455
 

कर्मभूमि : 455 हां, रानी बनकर आई हूं। किसी की चाकरी करना मेरा काम नहीं है। "तू झाडू लगाएगी कि नहीं? " भलमनसी से कहो, तो मैं तुम्हारे भंगी के घर में भी झाडू लगा देंगी, लेकिन भार का भय दिखाकर तुम मुझसे राजा के घर में भी झाडू नहीं लगवा सकतीं। इतना समझ रखो। तू न लगाएगी झाडू?" 'नहीं । चौकीदारिन ने कैदिन के केश पकड़ लिए और खींचती हुई कमरे के बाहर ले चली। रह-रहकर गालों पर तमाचे भी लगाती जानी थी। "चल जेलर साहब के पास। हां, ले चलो। मैं यही उनसे भी कहूगी। मार-गाली खाने नहीं आई हूं। सुखदा के लगातार लिखा-पढ़ी करने पर यह टहलनी दी गई थी, पर यह कांड देखकर सुखदा का मन क्षुब्ध हो उठा। इस कमरे में कदम रखना भी उसे बुरा लग रहा था। | कैदिन ने उसकी ओर सजले आंखों से देखकर कहा-तुम गवाह म्हन} इस चौकीदारिन ने मुझे कितना मारा है। | सखुदा ने समीप जाकर चौकीदारिन को हटाया और कैदिन का हाथ पकड़कर कमरे में ले गई। चौकीदार ने धमकाकर कहा--राज समरे यहां आ जाया कर। जो काम यह कहें, वह किया कर नहीं इंडे पड़ेंगे। | कैदिन क्रोध में कांप रही थी-मैं किसी को नोंडी नहीं हूँ और न यह काम करूंगी। किसी रानी- महारानी की टहल करने नहीं आई। जेल म मय बराबर हैं । | सुखदा ने देखा, युवती में आत्म-सम्मान की कमी नहीं। लज्जत होकर बोली-यहां कोई रानी-महारानी नहीं है बहन, मेरा जी अकेले घबराया करता था, इसलिए तुम्हें बुला लिया। हम दोनों यहां बहनों की तरह रहेगी। क्या नाम है तुम्हारा युवती की कठोर मुद्रा नर्म पड़ गई। बोनी--में राम मुन्नी हैं। दार से आई हूँ। सुखदा चौंक पड़ी। लाला समरकान्त ने यही नाम तो लिया था। पूछा-वहां किस अपराध में सजा हुई? | "अपराध क्या था? सरकार जमीन का लगान नहीं कम करती थी। चार आने की छुट हुई। जिंस का दाम आधा भी नहीं उतरा। हम किसके घर से ला के देत? इस बात पर हमने फरियाद को। बस, सरकार ने सजा देना शुरू कर दिया। मुन्नी को सुखदा अदालत में कई बार देख चुकी थी। तब से उसकी सूरत बहुत कुछ बदल गई थी। पूछा-तुम बाबू अमरकान्त को जानती हो? वह भी इसी मुआमले में गिरफ्तार हुए हैं। | मुन्नी प्रसन्न हो गई-जनिती क्यों नहीं, वह तो मेरे ही घर में रहते थे। तुम उन्हें कैसे जानती हो? वही तो हमारे अगुआ हैं। सुखदा ने कहा- मैं भी काशी की रहने वाली हूं। उसी मुहल्ले में उनका भी घर है। तुम क्या ब्राह्मणी हो? ‘हूं तो ठकुरानी, पर अब कुछ नहीं हूं। जात-पात, पूत-भतार सबको खो बैठी।