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कर्मभूमि:415
 

नहीं, उधर की कोई बात नहीं है। तुम्हारे विषय में था। तुम्हारी गिरफ्तारी की वारंट निकल गया है।

सुखदा ने हंसकर कहा-अच्छा ! मेरी गिरफ्तारी का वारंट है! तो उसके लिए आप इतना क्यों घबरा रहे हैं? मगर आखिर मेरा अपराध क्या है?

समरकान्त ने मन को संभालकर कहा-यही हड़ताल है। आज अफसरों में सलाह हुई हैं। और वहां यही निश्चय हुआ कि तुम्हें और चौधरियों को पकड़ लिया जाय। इनके पास दमन ही एक दवा हैं। असंतोष के कारणों को दूर न करेंगे, बस, पकड़-धकड़ से काम लेंगे, जैसे कोई माता भूख से रोते बालक को पीटकर चुप कराना चाहे।

सुखदा शांत भाव से बोली-जिस समाज का आधार ही अन्याय पर हो, उसकी सरकार के पास दमन के सिवा और क्या दवा हो सकती है? लेकिन इससे कोई यह न समझे कि यह आंदोलन दब जाएगा, उसी तरह, जैसे कोई गेंद टक्कर ख़ाकर और जोर से उछलती है, जितने ही जोर की टक्कर होगी, उतने ही जोर की प्रतिक्रिया भी होगी।

एक क्षण के बाद उसने उत्तेजित होकर कहा-मुझे गिरफ्तार कर लें। उन लाखों गरीबों को कहां ले जाएंगे, जिनकी आहें आसमान तक पहुंच रही हैं। यही आहें एक दिन किसी ज्वालामुखी की भांति फटकर सारे समाज और समाज के साथ सरकार को भी विध्वंस कर देंगी: अगर किसी की आंखें नहीं खुलतीं, तो न खुले। मैंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। एक दिन आएगा, जब आज के देवता कल ककर-पत्थर की तरह उठा-उठाकर गलियों में फेंक दिए जाएंगे और पैरों से ठुकराए जाएंगे। मेरे गिरफ्तार हो जाने से चाहे कुछ दिनों के लिए अधिकारियों के कानों में हाहाकार की आवाजें न पहुंचे, लेकिन वह दिन दूर नहीं है, जब यही आंसू चिंगारी बनकर अन्याय को भस्म कर देंगे। इसी राख से वह अग्नि प्रज्वलित होगी, जिसकी आंदोलन शाखाएं आकाश तक को हिला देंगी।

समरकान्त पर इस प्रलाप का कोई असर न हुआ। वह इस संकट को टालने का उपाय सोच रहे थे। डरते-डरते बोले-एक बात कहं, बुरा न मानो। जमानत

सुखदा ने त्यारियां बदलकर कहा-नहीं, कदापि नहीं। मैं क्यों जमत दें? क्या इसलिए कि अब मैं कभी जबान न खोलूंगी, अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेंगी, अपने मुंह पर जाली । लगा लूंगी? इससे तो यह कहीं अच्छा है कि अपनी आंखें फोड़ लें, जबान कटवा दें।

समरकान्त की सहिष्णुता अब सीमा तक पहुंच चुकी थी । गरजकर बोले-अगर तुम्हारी जबान काबू में नहीं है, तो कटवा लो। मैं अपने जीते-जी यह नहीं देख सकता कि मेरी बहू गिरफ्तार की जाए और मैं बैठा देखें। तुमने हड़ताल करने के लिए मुझसे पूछ क्यों न लिया? तुम्हें अपने नाम की लाज न हो, मुझे तो हैं। मैंने जिस मर्यादा-रक्षा के लिए अपने बेटे को त्या दिया, उस मर्यादा को मैं तुम्हारे हाथों न म्पिटने दूंगा।

बाहर से मोटर का हार्न सुनाई दिया। सुखदा के कान खड़े हो गए! बह आवेश में द्वार की ओर चली। फिर दौड़कर मुन्ने को नैना को गोद से लेकर उसे हदय से लगाए हुए अपने कमरे में जाकर अपने आभूषण उतारने लगी। समरकान्त का सारा क्रोध कच्चे रंग की भांति पानी पड़ते ही उड़ गया। लपककर बाहर गए और आकर घबराए हुए बोले--बहू, डिप्टी आ गया। मैं जमानत देने जा रहा हूँ। मेरी इतनी याचना स्वीकार करो। थोड़े दिनों का