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कर्मभूमि: 403
 

आदमी एकांत में मरना भी नहीं चाहता। उसकी हार्दिक इच्छा होती है कि कोई संकट पड़ने पर उसके सगे-संबंधी आकर उसे घेर लें।"

लाला धनीराम को खांसी आ गई। जरा देर के बाद वह फिर बोले- मैं कहता हूँ, तुम कुछ सिड़ी तो नहीं हो गए? व्यवसाय में सफलता पा जाने ही से किसी का जीवन सफल नहीं हो जाता। समझ गए? सफल मनुष्य वह है, जो दूसरों से अपना काम भी निकाले और उन पर एहसान भी रखे। शेखी मारना सफलता की दलील नहीं, ओछेपन की दलील है। वह मेरे पास आती, तो यहां से प्रसन्न होकर जाती और उसकी सहायता बड़े काम की वस्तु है। नगर में उसका कितना सम्मान है, शायद तुम्हें इसकी खबर नहीं। वह अगर तुम्हें नुकसान पहुंचाना चाहे, तो एक दिन में तबाह कर सकती है। और वह तुम्हें तबाह करके छोड़ेगी। मेरी बात गिरह बांध लो। वह एक ही जिद्दिन औरत है, जिसने पति की परवाह न की, अपने प्राणों की परवाह न की न जाने तुम्हें कब अकल आएगी?

लाला धनीराम को खांसी का दौरा आ गया। मनीराम ने दौड़कर उन्हें सभाला और उनकी पीठ सहलाने लगा। एक मिनट के बाद लालाजी को सांस आई।

मनीराम ने चिंतित स्वर में कहा-इस डॉक्टर की दवा से आपका कोई फायदा नहीं हो रहा है कविराज को क्यों न बुला लिया जाय? मैं उन्हें तार दिए देता हूं।

धनीराम ने लंबी सांस खीचकर कहा- अच्छा तो हूगा बेटा, मैं किसी साधु की चुटकी- भर राख ही से। हां, वह तमाशा चाहे कर लो, और यह तमाशा बुरा नही रहा। थोड़े से रुपये ऐसे तमाशों में खर्च कर देने का मै विरोध नहीं करता, लेकिन इस वक्त के लिए इतना बहुत है। कल डॉक्टर साहब से कह दूंगा, मुझे बहुत फायदा है, आप तशरीफ ले जाए। मनीराम ने डरते-डरते पूछा- कहिए तो मै सुखदादेवी के पास जाऊ?

धनीराम ने गर्व से कहा- नहीं, मैं तुम्हारा अपमान करना नहीं चाहता। जरा मुझे देखना है कि उसकी आत्मा कितनी उदार है मैने कितनी ही बार हानिया उठाई, पर किसी के सामने नीचा नहीं बना। समरकान्त को मैने देखा। वह लाख बुरा हो, पर दिल क साफ है, दया और धर्म को कभी नहीं छोड़ता। अब उनकी बहू की परीक्षा लेनी है। यह कहकर उन्होंने लकड़ी उठाई और धीरे-धीरे अपने कमरे की तरफ चले। मनोराम उन्हें हाथों से संभाले हुए था।

ग्यारह

सावन में नैना मैके आई। ससुराल चार कदम पर थी, पर छ: महीने से पहले आने का अवसर न मिला। मनीराम का बस होता तो अब भी न आने देता लेकिन सारा घर नैना को तरफ था।

सावन में सभी बहुएं मैके जाती हैं। नैना पर इतना बड़ा अत्याचार नहीं किया जा सकता। सावन की झड़ी लगी हुई थी। कहीं कोई मकान गिरता था, कही कोई छत बैठती थी। सुखदा बरामदे में बैठी हुई आंगन में उठते हुए बुलबुलों को सैर कर रही थी। आंगन कुछ गहरा था, पानी रुक जाया करता था। बुलबुलों का बतासों की तरह उठकर कुछ दूर चलना और गायब