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400:प्रेमचंद रचनावली-5
 

नौकर पान-इलायची की तश्तरी रख गया। मनीराम ने सुखदा के सामने तश्तरी रख दी। फिर बोले-मेरे घर में ऐसी औरत की जरूरत थी, जो सोसाइटी का आचार-व्यवहार जानती हो और लेडियों का स्वागत सत्कार कर सके। इस शादी से तो वह बात पूरी हुई नहीं। मुझे मजबूर होकर दूसरा विवाह करना पड़ेगा। पुराने विचार की स्त्रियों की तो हमारे यहां यों भी कमी न थी पर वह लेड़ियों की सेवा-सत्कार तो नहीं कर सकतीं। लेड़ियों के सामने तो उन्हें ला ही नहीं सकते। ऐसी फूहड़, गंवार औरतों को उनके सामने लाकर अपना अपमान कौन कराए?

सुखदा ने मुस्कराकर कहा-तो किसी लेडी से आपने क्यों विवाह न किया? मनीराम निस्संकोच भाव से बोला-धोखा हुआ और क्या? हम लोगों को क्या मालूम था कि ऐसे शिक्षित परिवार में लड़कियां ऐसी फूहड़ होंगी? अम्मां, बहनें और आस-पास की स्त्रियां तो नई बहू से बहुत संतुष्ट हैं। वह व्रत रखती है, पूजा करती है, सिंदूर का टीका लगाती है, लेकिन मुझे तो संसार में कुछ काम, कुछ नाम करना है। मुझे पूजा-पाठ वाली औरत की जरूरत नहीं, पर अब तो विवाह हो ही गया, यह तो टूट नहीं सकता। मजबूर होकर दूसरा विवाह करना पड़ेगा। अब यहां दो-चार लेडियां रोज ही आया चाहें, उनका सत्कार न किया जाए, तो काम नहीं चलता। सब समझती होंगी, यह लोग कितने मूर्ख हैं।

सुखद को इस इक्कीस वर्ष वाले युवक की इस निस्संकोच सांसारिकता पर घृणा हो रही थी। उसको स्वार्थ-सेवा ने जैसे उसकी सारी कोमल भावनाओं को कुचल दाना था, यहां तक कि वह हास्यास्पद हो गया था।

"इस काम के लिए तो अपको थोड़े-से वेतन में किरानियों की स्त्रियां मिल जाएगी, जो लड़ियों के साथ साहबों का भी सत्कार करेंगी।"

"आप इन व्यापार संबंधी समस्याओं को नहीं समझ सकती। बड़ेबड़े मिलों के एजेंट आते हैं। अगर मेरी स्त्री उनसे बातचीत कर सकती, तो कुछ-न-कुछ कमीशन रेट बढ़ जाती यह काम तो कुछ औरत ही कर सकती हैं।"

"मैं तो कभी न करू। चाहे सारा कारोबार जहन्नुम में मिल जाए।"

"विवाह का अर्थ जहां तक मैं समझा हूं, वह यही है कि स्त्री पुरुष की सहगामिन्दा हैं। अंग्रेजों के यहां बराबर स्त्रियां सहयोग देती हैं।"

"आप सहगामिनी का अर्थ नहीं समझे।"

मनीराम मुंहफट था। उसके मुसाहिब इसे साफगोई कहते थे। उसका विनोद भी गाली से शुरू होता था और गाली तो गाली थी ही। बोला-कम-से-कम आपको इस विषय में मुझे उपदेश करने का अधिकार नहीं है। आपने इस शब्द का अर्थ समझा होता, तो इस वक्त आप अपने पति से अलग न होतीं और न वह गली-कूचों की हवा खाते होते।

सुखदा का मुखमंडल लज्जा और क्रोध से आरक्त हो उठा। उसने कुर्सी से उठकर कठोर स्वर में कहा-मेरे विषय में आपको टीका करने का कोई अधिकार नहीं है, लाला मनीराम ! जरा भी अधिकार नहीं है। आप अंग्रेजी सभ्यता के बड़े भक्त बनते हैं। क्या आप समझते हैं कि अंग्रेज़ी पहनावा और सिगार ही उस सभ्यता के मुख्य अंग हैं? उसका प्रधान अंग है, महिलाओं का आदर और सम्मान। वह अभी आपको सीखना बाकी है। कोई