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कर्मभूमि: 375
 


फिर एक क्षण के बाद कदाचित अपनी कायरता पर लज्जित होकर कहा—किंतु गलियों में कोई इर नहीं है। चलो, मैं तुम्हें पहुंचा दें। कोई पूछे, तो कह देना, मैं लाली समरकान्त की कन्या हूं।

नैना ने मन में कहा—यह महाशय संन्यासी बनते हैं, फिर भी इतने डरपोक! पहले तो गरीबों को भड़काया और जब मार पड़ी, तो सबसे आगे भाग खड़े हुए। मौका न था, नहीं उन्हें ऐसा फटकारती कि याद करते। उनके साथ कई गलियों का चक्कर लगाती कोई दस बजे घर पहुंची। आत्मानन्द फिर उसी रास्ते से लौट गए। नैना ने उन्हें धन्यवाद भी न दिया। उनके प्रति अब उसे लेशमात्र भी श्रद्धा न थी।

वह अंदर गई, तो देखा—सुखदा सदर द्वार पर खड़ी है और सामने सड़क से लोग भागते चले जा रहे हैं।

सुखदा ने पूछा—तुम कहां चली गई थीं बीबी? पुलिस ने फेर कर दिया। बेचारे, आदमी भागे जा रहे हैं।

"मुझे तो रास्ते ही में पता लगा। गलियों में छिपती हुई आई हूं।"

"लोग कितने कायर हैं। घरों के किवाड़ तक बंद कर लिए।"

"लालाजी जाकर पुलिस वालों को मना क्यों नहीं करते?"

"इन्हीं के आदेश से तो गोली चली है। मना कैसे करंगे?"

"अच्छा दादा ही ने गोली चलवाई है?"

"हां, इन्हीं ले जाकर कप्तान से कहा है। और अब घर में छिपे बैठे हैं। मैं अछूतों का मंदिर जाना उचित नहीं समझती, लेकिन गोलियां चलते देखकर मेरा खून खौल रहा है। जिस धर्म को रक्षा गोलियों से हो, उस धर्म में सत्य का लोप समझो। देखो, देखो उस आदमी बेचारे को गोली लग गई। छाती से खून बह रही हैं।"

यह कहती हुई वह समरकान्त के सामने जाकर बोलीं-क्यों लालाजी, रक्ते की नदी बह जाय, पर मंदिर का द्वार न खुलेगा।

समरकान्त ने अविचलित भाव से उत्तर दिया—क्या बकती है बहु, इन डोम-चमारों को मंदिर में घुसने दें? तू तो अमर से भी दो-दो हाथ आगे बढ़ी जाती है। जिसके हाथ का पानी नहीं पी सकते, उसे मंदिर में कैसे जाने दूं?

सुखदा ने और वाद-विवाद न किया। वह मनस्वी महिला थी। यही तेजस्विता, जो अभिमान बनकर उसे विलासिनो बनाए हए थी, जो उसे छोटों से मिलने में देती थी, जो उसे किसी से दबने न देती थी, उत्सर्ग के रूप में उबल पड़ी। वह उन्माद की दशा में घर से निकली और पुलिस वालों के सामने खड़ी होकर, भागने वालों को ललकारती हुई बोली—भाइयो। क्यों भाग रहे हो? यह भागने का समय नहीं, छातो खोलकर सामने आने का समय है। दिखा दो कि तुम धर्म के नाम पर किस तरह प्राणों को होम करते; हो। धर्मवीर ही ईश्वर को पाते हैं। भागने वालों की कभी विजय नहीं होती।

भागने वालों के पांव संभल गए। एक महिला को गोलियों के सामने खड़ी देखकर कायरता भी लज्जित हो गई। एक बुढ़िया ने पास आकर कहा—बेटी, ऐसा न हो, तुम्हें गोली लग जाय।