पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/३६८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
368:प्रेमचंद रचनावली-5
 


सहसा पिछली सफों में कुछ हलचल मची। ब्रह्मचारीजी कई आदमियों को हाथ पकड़-पकड़कर उठा रहे थे और जोर-जोर से गालियां दे रहे थे। हंगामा हो गया। लोग इधर-उधर से उठकर वहां जमा हो गए। कथा बंद हो गई?

समरकान्त ने पूछा—क्या बात है ब्रह्मचारीजी?

ब्रह्मचारीजी ने ब्रह्मतेज से लाल-लाल आंखें निकालकर कहा—बात क्या है, यहां लोग भगवान् की कथा सुनने आते हैं कि अपना धर्म भ्रष्ट करने आते हैं। भंगी, चमार जिसे देखो घुसा चला आता है-ठाकुरजी का मंदिर में हुआ सराय हुई।

समरकान्त ने कड़ककर कहा—निकाल दो सभी को मारकर।

एक बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा—हम तो यहां दरवाजे पर बैठे थे सेठजी, जहां जते रखें हैं। हम क्या ऐसे नादान हैं कि आप लोगों के बीच में जाकर बैठ जाते?

ब्रह्मचारी ने उसे एक जूता जमाते हुए कहा—तू यहां आया क्यों? यहीं से वहां तक एक दरी बिछी हुई है। सब-का-सब भरभंड हुआ कि नहीं? प्रसाद है, चरणामृत है, गंगाजल है। सब मिट्टी हुआ कि नहीं? अब जाड़े-पाले में लोगों को नहाना-धोना पड़ेगा कि नहीं? हम कहते हैं तू बूढ़ा हो गया मिठुआ, मरने के दिन आ गए, पर तुझे अकल भी नहीं आई। चला है वहां से बड़ा भगत की पूंछ बनकर।

समरकान्त ने बिगड़कर कहा—और भी कभी आया था कि आज ही आया हैं?

मिठुआ बोला—रोज़ आते हैं महाराज, यहीं दरवाजे पर बैठकर भगवान की कथा सुनत है।

ब्रह्मचारीजी ने माथा पीट लिया। ये दुष्ट रोज यहां आते थे। रोज सबको छूते थे। इनका छुआ हुआ प्रसाद लोग रोज खाते थे। इससे बढ़कर अनर्थ क्या हो सकता है? धर्म पर इसम बड़ा आघात और क्या हो सकता है? धर्मात्माओं के क्रोध का पारावारे न रहा। कई आदमी जूते ले-लेकर उन गरीबों पर पिल पड़े। भगवान् के मंदिर में, भगवान् के भक्तों के हाथा भगवान् के भक्तों पर पादुका-प्रहार होने लगा।

डॉक्टर शान्तिकुमार और उनके अध्यापक खड़े जरा देर तक यह तमाशा देखते रहे। जब जूते चलने लगे तो स्वामी आत्मानन्द् अपना मोटा सोंटा लेकर ब्रह्मचारी की तरफ लपके।

डॉक्टर साहब ने देखा, घोर अनर्थ हुआ चाहता है। झपटकर आत्मानन्द के हाथों से साटा छीन लिया।

आत्मानन्द ने खून-भरी आंखों से देखकर कहा—अपि यह दृश्य देख सकते हैं, में नहीं देख सकता।

शान्तिकुमार ने उन्हें शांत किया और ऊंची आवाज से बोले—वाह रे ईश्वर-भक्तो। वाह! क्या कहना है तुम्हारी भक्ति का। जो जितने जूते मारेगा, भगवान् उस पर उतने प्रसन्न होंगे। उसे चारों पदार्थ मिल जाएंगे। सीधे स्वर्ग से विमान आ जाएगा। मगर अब चाहे जितना मासे, धर्म तो नष्ट हो गया।

ब्रह्मचारी, लाला समरकान्त, सेठ धनीराम और अन्य धर्म के ठेकेदारों ने चकित होकर शान्तिकुमार की ओर देखा। जूते चलने बंद हो गए।

शान्तिकुमार इस समय कुर्ता और धोती पहने, माथे पर चंदन लगाए, गले में चादर डाले