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कर्मभूमि: 367
 

तीन

एक महीने से ठाकुरद्वारे में कथा हो रही है। पं० मधुसुदनजी इस कला में प्रवीण हैं। उनकी कथा में श्रव्य और दृश्य, दोनों ही काव्यों का आनंद आता है। जितनी आसानी से वह जनता को हंसा सकते हैं, उतनी ही आसानी से रुला भी सकते हैं। दृष्टांतों के तो मानो वह सागर हैं, और नाट्य में इतने कुशल हैं कि जो चरित्र दर्शाते हैं, उनकी तस्वीरें खींच देते हैं। सारा शहर उमड़ पड़ता है। रेणुकादेवी तो सांझ ही से ठाकुरद्वारे में पहुंच जाती हैं। व्यासजी और उनके भजनीक सब उन्हीं के मेहमान हैं। नैना भी मुन्ने को गोद में लेकर पहुंच जाती है। केवल सुखदा को कथा में रुचि नहीं है। वह नैना के बार-बार आग्रह करने पर भी नहीं जाती। उसका विद्रोही मन सारे संसार से प्रतिकार करने के लिए जैसे नंगी तलवार लिए खड़ा रहता है। कभी- कभी उसका मन इतना उद्विग्न हो जाता है कि समाज और धर्म के सारे बंधनों को तोड़कर फेंक दे। ऐसे आदमियों की सजा यही है कि उनकी स्त्रियां भी उन्हीं के मार्ग पर चलें। तब उको आंखें खुलेंगी और उन्हें ज्ञात होगा कि जलना किसे कहते हैं। एक मैं कुल-मर्यादा के नाम को रोया करूं, लेकिन यह अत्याचार बहुत दिनों न चलेगा। अब कोई इस भ्रम में न रहे। वि पति जो करे, उसकी स्त्री उसके पांव धो-धोकर पिएगी, उसे अपना देवता समझेगी, उसके पांव दबाए ? नह उससे हंसकर बोलेगा, तो अपने भाग्य को धन्य मानेगी। वह दिन लद गए। इस विषय पर उसने पत्रों में कई लेख भी लिखे हैं।

आज नैना बहस कर बैठी-तुम कहती हो, पुरुष के आचार-विचार की परीक्षा कर लेनी चाहिए। क्या परीक्षा कर लेने पर धोखा नहीं होता? आए दिन तलाक क्यों होते रहते हैं?

सुखदा बोली-तो इसमें क्या बुराई है? यह तो नहीं होता कि पुरुष तो गुलछरें उड़ावे और स्त्री उसके नाम को रोती रहे?

नैना ने जैसे रटे हुए वाक्य को दुहराय--प्रेम के अभाव में सुख कभी नहीं मिल सकता। बाहरी रोकथाम से कुछ न होगा।

सुखदा ने छेड़ा-मालूम होता है, आजकल यह विद्या सीख रही हो। गर देख-भालकर विवाह करने में कभी-कभी धोखा हो सकता है, तो बिना देखे-भाले करने में बराबर धोखा होता है। तलाक की प्रथा यहां हो जाने दो, फिर मालूम होगा कि हमारा जीवन कितना सुखी होता है।

नैना इसका कोई जवाब न दे सकी। कल व्यासजी ने पश्चिमी विवाह-प्रथा की तुलना भारतीय पद्धति से की। वही बातें कुछ उखड़ी-सी उसे याद थीं।

बोली-तुम्हें कथा में चलना है कि नहीं, यह बताओ।

"तुम जाओ, मैं नहीं जाती"

नैना ठाकुरद्वारे में पहुंची तो कथा आरंभ हो गई थी। आज और दिनों से ज्यादा हुजूम था। नौजवान-सभा और सेवा- पाठशाला के विद्याथ, और अध्यापक भी आए हुए थे। मधुसूदनजी कह रहे थे-राम-रावण की कथा तो इस जीवन की, इस संसार की कथा है, इसको चाहो तो सुनना पड़ेगा, न चाहो तो सुनना पड़ेगा। इससे हम-तुम बच नहीं सकते। हमारे ही अंदर राम भी हैं, रावण भी हैं, सीती भी हैं, आदि ।