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336:प्रेमचंद रचनावली-5
 

अमर मुस्कराया--और जो पीछे से भेद खुल गया?

चौधरी का जवाब तैयार था-तो हम कह देंगे, हमारे पुरबज छतरी थे, हालांकि अपने को छत्तरी-बंस कहते लाज आती है। सुनते हैं, छत्तरी लोगों ने मुसलमान बादशाहों को अपनी बेटियां ब्याही थीं। अभी कुछ जलपान तो न किया होगा, भैया?कहां गया तेजा जा, बहू से कुछ जलपान करने को ले आ। भैया, भगवान् का नाम लेकर यहीं टिक जाओ। तीन-चार बीघे सलोनी के पास है। दो बीघे हमारे साझे कर लेना। इतना बहुत है। भगवान् दें तो खाए न चुके।

लेकिन जब सलोनी बुलाई गई और उससे चौधरी ने यह प्रस्ताव किया, तो वह बिचक उठी। कठोर मुद्रा से बोली-तुम्हारी मंसा है, अपनी जमीन इनके नाम करा दूं और मैं हवा खाऊ, यहीं तो?

चौधरी ने हंसकर कहा-नहीं-नहीं, जमीन तेरे ही नाम रहेगी, पगली! यह तो खाली जोंगे। यही समझ ले कि तू इन्हें बटाई पर दे रही है।

सलोनी ने कानों पर हाथ रखकर कहा- भैया, अपनी जगह-जमीन मैं किसी के नाम नहीं लिखती। यों हमारे पाहुने हैं, दो-चार. दस दिन रहें। मुझसे जो कुछ होगा, सेवा-सत्कार करूगी। तुम बटाई पर लेते हो, तो ले लो। जिसको कभी देखा ने सुना, न जान न पहचान, उसे कैसे बटाई पर दे दें?

पयाग ने चौधरी की ओर तिरस्कार-भाव से देखकर कहा-भर गया मन, या अभी नहो। कहते हो औरतें मूरख होती हैं। यह चाहें हमको-तुमको खड़े-ख़ड़े बेच लावें। सन्नानी काकी मुंह की ही मीठी हैं। सलोनी तिनक उठी हा जी, तुम्हारे कहने से अपने पुरखों की जमीन छोड़ दू। मेरे ही पेट का लड़का, मुझी को चराने चला है।

काशी ने सलोनी का पक्ष लिया-ठीक तो कहती हैं, बेजाने-सुने आदमी को अपनी जमीन कैसे सौंप दें?

अमरकान्त को इस विवाद में दार्शनिक आनंद आ रहा था। मुस्कराकर बोला- हां, काकी, तुम ठीक कहती हो। परदेसी आदमी का क्या भरोसा?

मुन्नी भी द्वार पर खड़ी यह बातें सुन रही थी, बोली--पगला गई हो क्या, काकी? तुम्हारे खेत कोई सिर पर उठा ले जाएगा? फिर हम लोग तो हैं ही। जब तुम्हारे साथ कोई कपट करेगा, तो हम पूछेगे नहीं?

किसी भड़के हुए जानवर को बहुत से आदमी घेरने लगते हैं, तो वह और भी भड़क जाता है। सलोनी समझ रही थी, यह सब-के-सब मिलकर मुझे लुटवाना चाहते हैं। एक बार नाहीं करके, फिर हां न की। वेग से चल खड़ी हुई।

पयाग बोला—चुडैल है, चुडैल।

अमर ने खिसियाकर कहा-तुमने नाहक उससे कहा, दादा। मुझे क्या, यह गांव में सही और गांव सही।

मुन्नी का चेहरा फक हो गया।

गुदड़ बोले-नहीं भैया, कैसी बातें करते हो तुम मेरे साझीदार बनकर रहो। महन्तजी से कहकर दो-चार बीघे का और बंदोबस्त करा दंगा। तुम्हारी झोंपड़ी अलग बन जाएगी। खाने-