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312:प्रेमचंद रचनावली
 

"मालूम होता है, भाई से यही विद्या सीखती है।"

"भाई से अगर न्याय-अन्याय का ज्ञान सीखती हूं, तो कोई बुराई नहीं।"

"अच्छा भाई, सिर मत खा, कह दिया अंदर जा। मैं किसी को मनाने-समझाने नहीं जाता।"

नैना ने सहसा सिर झुका लिया और जैसे दिल पर जोर डालकर कहा–तो फिर मैं भी भाभी के साथ चली जाऊंगी।

लालाजी की मुद्रा कठोर हो गई-चली जी, मैं नहीं रोकता। ऐसी संतान से बेसंतान रहना ही अच्छा। खाली कर दो मेरा घर, आज ही खाली कर दो। खूब टांगे फैलाकर सोऊंगा। कोई चिता तो न होगी। आज यह नहीं है, आज वह नहीं है, यह तो न सुनना पड़ेगा। तुम्हारे रहने से कौन सुख था मुझे?

नैना लाल आंखें किए सुखदा से जाकरे बोली-भाभी, मैं भी तुम्हारे साथ चलेंगी।

सुखदा ने अविश्वास के स्वर में कहा-हमारे साथ। हमारा तो अभी कहीं घर-द्वार नहीं है। ने पास पैसे हैं, न बरतन-भांडे, न नौकर-चाकर। हमारे साथ कैसे चलोगी? इस महल में कौन रहेगा?

नैना की आंखें भर आईं-जब तुम्हीं जा रही हो, तो मेरा यहां क्या है?

पगली सिल्लो आई और ठट्टा मारकर बोली-तुम सब जने चले जाओ, अब मैं इस घर की रानी बनूंगी। इस कमरे में इसी पलंग पर मजे से सोऊंगी। कोई भिखारी द्वार पर आएगा तो झाडू लेकर दौडूगी।

अमर पगली के दिल की बात समझ रहा था, पर इतना बड़ा खटला लेकर कैसे जाए, घर में एक ही तो रहने लायक कोठरी है। वहां नैना कहां रहेगी और यह पगली तो जीना मुहाल कर देगी। नैना से बोला-तुम हमारे साथ चलोगी, तो दादा का खाना कौन बनाएगा, नैना? फिर हम कहीं दूर तो नहीं जाते। मैं वादा करता हूं, एक बार रोज तुमसे मिलने आया करूंगा। तुम और सिल्लो दोनों रहो। हमें जाने दो।।

नैना रो पड़ी-तुम्हारे बिना मैं इस घर में कैसे रहूगी भैया, सोचो! दिन-भर पड़े-पडे क्या करूंगी? मुझसे तो छिन भर भी न रहा जाएगा। मुन्ने को याद कर-करके रोया करूंगी। देखते हो भाभी, मेरी ओर ताकता भी नहीं।

अमर ने कहा--तो मुन्ने को छोड़ जाऊं? तेरे ही पास रहेगा।

सुखदा ने विरोध किया-वाह। कैसी बात कर रहे हो? रो-रोकर जान दे देगा। फिर मेरा जी भी तो न मानेगा।

शाम को तीनों आदमी घर से निकले। पीछे-पीछे सिल्लो भी हंसती हुई चली जाती थी। सामने के दुकानदार ने समझा, कहीं नेवते जाती हैं, पर क्या बात है, किसी के देह पर छल्ला भी नहीं! न चादर, न धराऊ कपड़े!

लाला समरकान्त अपने कमरे में बैठे हुक्का पी रहे थे। आंखें उठाकर भी न देखा। एक घंटे के बाद वह उठे, घर में ताला डाल दिया और फिर कमरे में आकर लेट रहे।

एक दुकानदार ने आकर पूछा-भैया और बीवीं कहां गए, लालाजी?