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178:प्रेमचंद रचनावली-5
 


से कह दे। एक आदमी उनसे मिलने आया ।

यह कहकर देवीदीन ने फिर रमा का हाथ पकड़ लिया और बोला-चलो, अब सरकारमें तुम्हारी पेसी होगी। बहुत भागे थे। बिना वारंट के पकड़े गए। इतनी आसानी से पुलिस भी न पकड़ सकती।

रमा का मनोल्लास द्रवित हो गया था। लज्जा से गड़ा जाता था। जालपा के प्रश्नों का उसके पास क्या जवाब था। जिस भय से वह भागा था, उसने अंत में उसका पीछा करके उसेपरास्त ही कर दिया। वह जालपा के सामने सीधी आंखें भी तो न कर सकता था। उसने हाथछुड़ा लिया और जीने के पास ठिठक गया।

देवीदीन ने पूछा-क्यों रुक गए?

रमा ने सिर खुजलाते हुए कहा-चलो, मैं आता हूं।

बुढ़िया ने ऊपर ही से कहा-पूछो, कौन आदमी है, कहां से आया है?

देवीदीन ने विनोद किया-कहता है, मैं जो कुछ कहूंगा, बहू से ही कहूंगा।

'कोई चिठी लाया है?'

'नहीं।

सन्नाटा हो गया। देवीदीन ने एक क्षण के बाद पूछा-कह दूं, लौट जाय?

जालपा जीने पर आकर बोली-कौन आदमी है, पूछती तो हूं।

'कहता है, बड़ी दूर से आया हूं।'

'है कहां?'

'यह क्या खड़ा है।'

"अच्छा, बुला लो।

रमा चादर ओढ़े, कुछ झिझकता, कुछ झेंपता, कुछ डरता, जीने पर चढ़ा। जालपा ने उसेदेखते ही पहचान लिया। तुरंत दो कदम पीछे हट गई। देवीदीन वहां न होता तो वह दो कदम और आगे बढ़ी होती।

उसकी आंखों में कभी इतना नशा न था, अंगों में कभी इतनी चपलता न थी, कपोलकभी इतने न दमके थे, हृदय में कभी इतना मृदु कंपन न हुआ था। आज उसकी तपस्या सफल हुई।

उनतालीस

वियोगियों के मिलन की रात बटोहियों के पड़ाव की रात है, जो बातों में कट जाती है। रमा औरजालपा, दोनों ही को अपनी छ: महीने की कथा कहनी थी। रमा ने अपना गौरव बढ़ाने के लिए अपने कष्टों को खूब बढ़ा-चढ़ाकर बयान किया। जालपा ने अपनी कथा में कष्टों की चर्चा तक न आने दी। वह डरती थी इन्हें दुःख होगा, लेकिन रमा को उसे रुलाने में विशेष आनंद आ रहा था। वह क्यों भागा, किसलिए भागा, कैसे भागा, यह सारी गाथा उसने करुण शब्दों में कही और जालपा ने सिसक-सिसककर सुनी। वह अपनी बातों से उसे प्रभावित करना चाहता था।