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गबन : 175
 


जीवन का प्रश्न तो हल कर दिया। अब आनंद से जिंदगी कटेगी। कोशिश करके उसी तरफ अपना तबादला करवा लूंगा। यह सोचते-सोचते रमा को खयाल आया कि जालपा भी यहां मेरे साथ रहे, तो क्या हरज है। बाहर वालों से मिलने की रोक-टोक है। जालपा के लिए क्या रुकावट हो सकती है। लेकिन इस वक्त इस प्रश्न को छेड़ना उचित नहीं। कल इसे तय करूंगा। देवीदीन भी विचित्र जीव है। पहले तो कई बार आया, पर आज उसने भी सन्नाय खींच लिया। कम-से-कम इतना तो हो सकता था कि आकर पहरे वाले कांस्टेबल से जालपा के आने की खबर मुझे देता। फिर मैं देखता कि कौन जालपा को नहीं आने देता। पहले इस तरह की कैद जरूरी थी; पर अब तो मेरी परीक्षा पूरी हो चुकी। शायद सब लोग खुशी से राजी हो जाएंगे।

रसोइया थाली लाया। मांस एक ही तरह का था। रमा थाली देखते ही झल्ला गया। इन दिनों रुचिकर भोजन देखकर ही उसे भूख लगती थी। जब तक चार-पांच प्रकार का मांस न हो,चटनी-अचार न हो, उसकी तृप्ति न होती थी।

बिगड़कर बोला-क्या खाऊं तुम्हारा सिर? थाली उठा ले जाओ।

रसोइए ने डरते-डरते कहा- हुजूर,इतनी जल्द और चीजें कैसे बनाता । अभी कुल दो घंटे तो आए हुए हैं।

'दो घंटे तुम्हारे लिए थोड़े होते हैं।'

'अब हुजूर से क्या कहूं।"

'मत बको।'

'हुजूर'

‘मत बको ? डैम ।'

रसोइए ने फिर कुछ न कहा। बोतल लाया,बर्फ तोड़कर ग्लास में डाली और पीछे हटकर खड़ा हो गया।

रमा को इतना क्रोध आ रहा था कि रसोइए को नोंच खाए। उसका मिजाज इन दिनों बहुत तेज हो गया था।

शराब का दौर शुरू हुआ,तो रमा का गुस्सा और भी तेज हुआ। लाल-लाल आंखों से देखकर बोला-चाहूं तो अभी तुम्हारा कान पकड़कर निकाल दें। अभी, इसी दम । तुमने समझा क्या है।

उसका क्रोध बढ़ता देखकर रसोइया चुपके-से सरक गया। रमा ने ग्ला लिया और दो-चार लुकमे खाकर बाहर सहन में टहलने लगा। यही धुन सवार थी, कैसे यहां से निकल जाऊं।

एकाएक उसे ऐसा जान पड़ा कि तार के बाहर वृक्षों की आड़ में कोई है। हां,कोई खड़ा उसकी तरफ ताक रहा है। शायद इशारे से अपनी तरफ बुन्ग रहा है। रमानाथ का दिल धकड़ने लगा। कहीं षड्यंत्रकारियों ने उसके प्राण लेने की तो नहीं ठानी है। यह शंका उसे सदैव बनी रहती थी। इसी खयाल से वह रात को बंगले के बाहर बहुत कम निकलता था। आत्म-रक्षा के भाव ने उसे अंदर चले जाने की प्रेरणा की। उसी वक्त एक भोटर सड़क पर निकली। उसके प्रकाश में रमा ने देखा, वह अंधेरी छाया स्त्री है। उसकी साड़ी साफ नजर आ रही है। फिर उसे ऐसा मालूम हुआ कि वह स्त्री उसकी ओर आ रही है। उसे फिर शंका हुई, कोई मर्द यह वेश