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158 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


कि ऊपर ही ऊपर परागराज भेज दिए जाते हैं।

जग्गो-दारोगाजी भी बड़े वह हैं। कहां तो कहा था कि इतना लेंगे,कहां लेकर चल दिए

देवीदीन-इसीलिए तो बैठा हूं कि आवें तो दो-दो बातें कर लें।

जग्गो-हां,फटकारना जरूर। जो अपनी बात को नहीं, वह अपने बाप का क्या होगा। मैं तो खरी कहगी। मेरा क्या कर लेंगे !

देवीदीन-दुकान पर कौन है?

जग्गो–बंद कर आई हूं। अभी बेचारे ने कुछ खाया भी नहीं। सबेरे से वैसे ही हैं। चूल्हे में जाय वह तमासा। उसी के टिकट लेने तो जाते थे। न घर से निकलते तो काहे को यह बला सिर पड़ती।

देवीदीन-जो उधर ही से पराग भेज दिया तो?

जग्गो–तो चिट्ठी तो आवेगी ही। चलकर वहीं देख आयेंगे?

देवीदीन-(आंखों में आंसू भरकर) सजा हो जायगी?

जग्गो-रुपया जमा कर देंगे तब काहे को होगी। सरकार अपने रुपये ही तो लेगी?

देवीदीन–नहीं पगली, ऐसा नहीं होता। चोर माल लौटा दे तो वह छोड़ थोड़े ही दिया जाएगा।

जग्गो ने परिस्थिति की कठोरता अनुभव करके कहा-दारोगाजी।

वह अभी बात भी पूरी न करने पाई थी कि दारोगाजी की मोटर सामने आ पहुंची। इंस्पेक्टर साहब भी थे। रमा इन दोनों को देखते ही मोटर से उतरकर आया और प्रसन्न मुख से बोला-तुम यहां देर से बैठे हो क्या दादा?आओ,कमरे में चलो। अम्मां,तुम कब आईं?

दारोगाजी ने विनोद करके कहा-कहो चौधरी,'लाएं रुपये?

देवीदीन-जब कह गया कि मैं थोड़ी देर में आता हूं, तो आपको मेरी राह देख लेनी चाहिए थी। चलिए, अपने रुपये लीजिए।

दारोगा–खोदकर निकाले होंगे?

देवीदीन-आपके अकबाल से हजार-पांच सौ अभी ऊपर ही निकल सकते हैं। जमीन खोदने की जरूरत नहीं पड़ी। चलो भैया बुढ़िया कब से खड़ी है। मैं रुपये चुकाकर आता हूं। यह तो इंसपिट्टर साहब थे ? पहले इसी थाने में थे।

दारोगा-तो भाई, अपने रुपये ले जाकर उसी हांडी में रख दो। अफसरों की सलाह हुई कि इन्हें छोड़ना ने चाहिए। मेरे बस की बात नहीं है।

इंस्पेक्टर साहब तो पहले ही दफ्तर में चले गए थे। ये तीनों आदमी बातें करते उसके बगल वाले कमरे में गए। देवीदीन ने दरोगा की बात सुनी,तो भौहें तिरछी हो गई बोला-दारोगाजी,मरदों की बात होती है,मैं तो यही जानता हूं। मैं रूपये आपके हुक्म से लाया हूं। आपको अपना कौल पूरा करना पड़ेगा। कहके मुकर जाना नीचों का काम है।

इतने कठोर शब्द सुनकर दारोगाजी को भन्ना जाना चाहिए था; पर उन्होंने जरा भी बुरी