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गबन : 119
 

देवीदीन-तो कब तक चिट्ठी न लिखोगे?

रमनाथ–देखा चाहिए।

देवीदीन-पुलिस तुम्हारी टोह में होगी।

देवीदीन चिंता में डूब गया। रमा को भ्रम हुआ, शायद पुलिस का भय इसे चिंतित कर रहा है। बोला-हां, इसकी शंका मुझे हमेशा बनी रहती है। तुम देखते हो, मैं दिन को बहुत कम घर से निकलता हूं, लेकिन मैं तुम्हें अपने साथ नहीं घसीटना चाहता। मैं तो जाऊंगा ही, तुम्हें क्यों उलझन में डालें। सोचता हूं, कहीं और चला जाऊं, किसी ऐसे गांव में जाकरे रहूं, जहां पुलिस की गंध भी न हो।

देवीदीन ने गर्व से सिर उठाकर कहा-मेरे बारे में तुम कुछ चिंता न करो भैया, यहां पुलिस से डरने वाले नहीं हैं। किसी परदेशी को अपने घर ठहराना पाप नहीं है। हमें क्या मालूम किसके पीछे पुलिस है? यह पुलिस का काम है, पुलिस जाने। मैं पुलिस का मुखबिर नहीं, जासूस नहीं, गोइंदा नहीं। तुम अपने को बचाए रहो, देखो भगवान् क्या करते हैं। हां, कहीं बुढिया से न कह देना, नहीं तो उसके पेट में पानी न पचेगी।

दोनों एक क्षण चुपचाप बैठे रहे। दोनों इस प्रसंग को इस समय बंद कर देना चाहते थे।

सहसा देवीदीन ने कहा-क्यों भैया, कहो तो मैं तुम्हारे घर चला जाऊं। किसी को कानोंकान खबर न होगी। मैं इधर उधर से सारा ब्योरा पूछ आऊंगा। तुम्हारे पिता से मिलूंगा, तुम्हारी माता को समझाऊंगा, तुम्हारी घरवाली से बातचीत करूंगा। फिर जैसा उचित जान पड़े, वैसा करना।

रमा ने मन ही-मन प्रसन्न होकर कहा-लेकिन कैसे पूछोगे दादा, लोग कहेंगे न कि तुमसे इन बातों से क्या मतलब?

देवीदीन ने ठट्टा मारकर कहा-भैया, इससे सहज तो कोई काम ही नहीं। एक जनेऊ गले में डाला और ब्राह्मण बन गए। फिर चाहे हाथ देखो, चाहे, कुंडली बांचो, चाहे सगुन विचारों, सब कुछ कर सकते हो। बुढ़िया भिक्षा लेकर आवेगी। उसे देखते ही कहूंगा, माता तेरे को पुत्र के परदेस जाने का बड़ा कष्ट है, क्या तेरा कोई पुत्र विदेस गया है? इतना सुनते ही घर-भर के लोग आ जाएंगे। वह भी आवेगी। उसका हाथ देखूंगा। इन बातों में में पक्का हूं भैया, तुम निश्चित रहो। कुछ कमा लाऊंगा, देख लेना। माघ-मेला भी होगा। स्नान करता आऊंगा।

रमा की आंखें मनोल्लास से चमक उठीं। उसका मन मधुर कल्पनाओं के संसार में जा पहुंची। जालपा उसी वक्त रतन के पास दौड़ी जायगी। दोनों भाति-भांति के प्रश्न करेंगी-क्यों बाबा, वह कहां गए हैं? अच्छी तरह हैं न? कब तक घर आवेंगे? कभी बाल-बच्चों की सुधि आती है उनको? वहां किसी कामिनी के माया-जाल में तो नहीं फंस गए? दोनों शहर का नाम भी पूछेगी। कहीं दादा ने सरकारी रुपये चुका दिए हों, तो मजा आ जाय। तब एक ही चिंता रहेगी।

देवीदीन बोला-तो है न सलाह?

रमानाथ-कहां जायगे दादा, कष्ट होगा।

'माघ का स्नान भी तो करूंगा। कष्ट के बिना कहीं पुन्न होता है। मैं तो कहता हूं, तुम भी चलो। मैं वहां सब रंग-ढंग देख लूंगा। अगर देखना कि मामला टिचन है, तो चैन से घर चले जाना। कोई खटका मालूम हो, तो मेरे साथ ही लौट आना।'

रमा ने हंसकर कहा-कहां की बात करते हो, दादा ! मैं यों कभी न जाऊंगा। स्टेशन पर