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गबन : 117
 


जाता है? बी-यू-टी 'बट' है; लेकिन पी-यू-टी 'पुट' क्यों होता है? तुम्हें भी बड़ी कठिन लगती होगी।

रमा ने मुस्कराकर कहा-पहले तो कठिन लगती थी, पर अब तो आसान मालूम होती है।

देवीदीन-जिस दिन पराइमर ख़तम होगी, महाबीरजी को सवा सेर लड्डू चढ़ाऊंगा। पराई-मर का मतलब है, पराई स्त्री मर जाय। मैं कहता हूं, हमारी-मर। पराई के मरने से हमें क्या सुख ! तुम्हारे बाल-बच्चे तो हैं न, भैया?

रमा ने इस भाव से कहा, मानो हैं, पर न होने के बराबर हैं-हां, हैं तो ।

'कोई चिट्टी-चपाती आई थी?'

'और न तुमने लिखी? अरे ! तीन महीने से कोई चिट्टी ही नहीं भेजी? घबड़ाते न होंगे लोग?'

'जब तक यहां कोई ठिकाना न लग जाये, क्या पत्र लिखूं।'

'अरे भले आदमी, इतना तो लिख दो कि मैं यहां कुशल से हूं। घर से भाग आए थे, उन लोगों को कितनी चिंता हो रही होगी। मां-बाप तो हैं न?

'हां, हैं तो।'

देवीदीन ने गिड़गिड़ाकर कहा-तो भैया, आज ही चिट्टी डाल दो, मेरी बात मानो।

रमा ने अब तक अपना हाल छिपाया था। उसके मन में कितनी ही बार इच्छा हुई कि देवीदीन से कह दें पर बात होंठो तक आकर रुक जाती थी। वह देवीदीन आलोचना सुनना चाहता था। वह जानना चाहता था कि यह क्या सलाह देता है। इस समय देवीदीन के सद्भाव ने उसे पराभूत कर दिया। बोला-घर से भाग आया हूं, दादा ।

देवीदीन ने मूंछों में मुस्कराकर कहा-यह तो मैं जानता हूं, क्या बाप से लड़ाई हो गयी?'

'नहीं।'

'मां ने कुछ कहा होगा?'

'यह भी नहीं ।

'तो घरवाली से ठन गई होगी। वह कहती होगी, मैं अलग रहूंगी. तुम कहते होगे मैं अपने मां-बाप से अलग न रहूंगा। या गहने के लिए जिद करती होगी। नाक में दम कर दिया होगा। क्यों?

रमा ने लज्जित होकर कहा-कुछ ऐसी बात थी, दादा । वह तो गहनों की बहुत इच्छुक न थी, लेकिन पा जाती थी, तो प्रसन्न हो जाती थी, और मैं प्रेम की तरंग में आगा-पोछा कुछ ने सोचता था।

देवीदीन के मुंह से मानो आप-ही-आप निकल आया-सरकारी रकम तो नहीं उड़ा दी।

रमा को रोमांच हो आया। छाती धक-से हो गई, वह सरकारी रकम की बात उससे छिपाना चाहता था। देवीदीन के इस प्रश्न ने मानो उस पर छापा मार दिया। वह कुशल सैनिक की भांति अपनी सेना को घाटियों से, जासूसों की आंख बचाकर, निकाल ले जाना चाहता था; पर इस छापे ने उसकी सेना को अस्त-व्यस्त कर दिया। उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह एकाएक कुछ निश्चय न कर सका कि इसका क्या जवाब दें।