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गबन : 101
 


हंसी आती थी। किसी जवान को भी रमा ने यों हंसते न देखा था। इतनी ही देर में उसने अपनी सारी जीवन-कथा कह सुनाई। कितने ही लतीफे याद थे। मालूम होता था, रमा से वर्षों की मुलाकात है। रमा को भी अपने विषय में एक मनगढंत कथा कहनी पड़ी।

देवीदीन–तो तुम भी घर से भाग आए हो? समझ गया। घर में झगड़ा हुआ होगा। बहू कहती होगी–मेरे पास गहने नहीं, मेरा नसीब जल गया। सास-बहू में पटती न होगी। उनका कलह सुन-सुन जी और खट्टा हो गया होगा।

रमानाथ–हां बाबा, बात यही है, तुम कैसे जान गए?

देवीदीन हंसकर बोला-यह बड़ा भारी मंत्र है भैया ! इसे तेली की खोपड़ी पर जगाया जाता है। अभी लड़के-बाले नहीं हैं न?

रमानाथ-नहीं, अभी तो नहीं हैं।

देवीदीन-छोटे भाई भी होंगे?

रमा चकित होकर बोला—हां दादा, ठीक कहते हो। तुमने कैसे जाना?

देवीदीन फिर ठट्टा मारकर बोला-यह सब मंत्रों का खेल है। ससुराल धनी होगी, क्यों?

रमानाथ-हां दादा, है तो।

देवीदीन-मगर हिम्मत न होगी।

रमानाथ- बहुत ठीक कहते हो, दादा। बड़े कम-हिम्मत हैं। जब से विवाह हुआ अपनी लड़कीं तक को तो बुलाया नहीं।

देवीदीन-समझ गया भैया, यही दुनिया का दस्तूर है। बेटे के लिए कहो चोरी करें, भीख मांगें , बेटी के लिए घर में कुछ है ही नहीं।

तीन दिन से रमा को नींद न आई थी। दिनभर रुपये के लिए मारा-मारा फिरती, रात-भर चिंता में पड़ा रहता। इस वक्त बातें करते-करते उसे नींद आ गई। गरदन झुकाकर झपकी लेने लगा। देवीदीन से तुरंत अपनी गठरी खोली; उसमें से एक दरी निकाली, और तख्त पर बिछाकर बोला-तुम यहां आकर लेट रहो, भैया ! मैं तुम्हारी जगह पर बैठ जाता हूं।

रमा लेटा रहा। देवीदीन बार-बार उसे स्नेह-भरी आंखों से देखा था, मानो उसका पुत्र कहीं परदेश से लौटा हो।

बाईस

जब रमा कोठे से धम-धम नीचे उतर रहा था, उस वक्त जालपा को इसका जरा भी शंका न हुई कि वह घर से भागा जा रहा है। पत्र तो उसने पद ही लिया था। जो ऐसा झुंझला रहा था कि चलकर रमा को खूब खरी-खरी सुनाऊं। मुझसे यह छल-कपट ! पर एक ही क्षण में उसके भाव बदल गए। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ है, सरकारी रुपये खर्च कर डाले हों। यही बात है, रतन के रुपये सराफ को दिए होंगे। उस दिन रतन को देने के लिए शायद वे सरकारी रुपये उठा लाए थे। यह सोचकर उसे फिर क्रोध आया-यह मुझसे इतना परदा क्यों करते हैं? क्यों मुझसे बढ़-बढ़कर बातें करते थे? क्या मैं इतना भी नहीं जानती कि संसार में अमीर-गरीब दोनों ही होते हैं? क्या सभी स्त्रियां गहनों से लदी रहती हैं? गहने न पहनना क्या कोई पाप है? जब और