पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/९७

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

९७
लाग-डाँट


विधर्मी शिक्षा की बेड़ी से कैसे मुक्त हो सकोगे? स्वराज्य लेने का केवल एक ही उपाय है और वह आत्म-संयम है, यही महौषधि तुम्हारे समस्त रोगों को समूल नष्ट करेगी। आत्मा की दुर्बलता ही पराधीनता का मुख्य कारण है, आत्मा को बलवान बनाओ, इन्द्रियों को साधो, मन को वश में करो, तभी तुममें भ्रातृभाव पैदा होगा, तभी वैमनस्य मिटेगा, तभी ईर्ष्या और द्वेष का नाश होगा, तभी भोग-विलास से मन हटेगा, तभी नशेबाजी का दमन होगा। आत्मबल के बिना स्वराज्य कभी उपलब्ध न होगा। स्वार्थ सब पापों का मूल है, यही तुम्हें अदालतों में ले जाता है, यही तुम्हें विधर्मी शिक्षा का दास बनाये हुए है। इस पिशाच को आत्मबल से मारो और तुम्हारी कामना पूरी हो जायगी। सब जानते हैं, मैं ५० साल से अफीम का सेवन करता हूँ, आज से मैं अफीम को गौ का रक्त समझता हूँ। चौधरी से मेरी तीन पीढ़ियों की अदावत है, आज से चौधरी मेरे भाई हैं। आज से मेरे घर के किसी प्राणी को घर के कते सूत से बुने हुए कपड़ों के सिवाय कुछ और पहनते देखो तो मुझे जो दण्ड चाहो दो। बस, मुझे यही कहना है।परमात्मा हम सब की इच्छा पूरी करें!

यह कहकर भगतजी घर की ओर चले कि चौधरी दौड़कर उनके गले से लिपट गये। तीन पुश्तों की अदावत एक क्षण में शान्त हो गयी।

उसी दिन से चौधरी और भगत साथ-साथ स्वराज्य का उपदेश करने लगे। उनमें गाढ़ी मित्रता हो गयी और यह निश्चय करना कठिन था कि दोनों में जनता किसका अधिक सम्मान करती है।

प्रतिद्वन्दिता की चिनगारी ने दोनों पुरुषों के हृदय-दीपक को प्रकाशित कर दिया था।