भगत--लोग कहते हैं कि लड़कों को सरकारी मदरसों में मत भेजो--सरकारी मदरसों में न पढ़ते तो आज हमारे भाई बड़ी-बड़ी नौकरियाँ कैसे पाते, बड़े-बड़े कारखाने कैसे चलाते, बिना नयी विद्या पढ़े अन्न संसार में निर्वाह नहीं हो सकता, पुरानी विद्या पढ़कर पत्रा देखने और कथा बाँचने के सिवा और क्या आता है? राज-काज क्या यही पोथी बाँचने-वाले लोग करेंगे?
एक शंका--हमें राज-काज न चाहिए, हम अपनी खेती-बारी ही में मगन हैं, किसी के गुलाम तो नहीं?
दूसरी शंका--जो विद्या घमंडी बना दे उससे मूरख ही अच्छा। यह नथी विद्या पढ़कर तो लोग सूट-बूट, घड़ी छड़ी, हैट-कोट लगाने लगते हैं, अपने शौक के पीछे देश का धन विदेशियों की जेब में भरते हैं। ये देश के द्रोही हैं।
भगत--गांजा-शराब की ओर आजकल लोगों की कड़ी निगाह है। नशा बुरी लत है इसे सब जानते हैं। सरकार को नशे की दुकानों से करोड़ों रुपये साल की आमदनी होती है। अगर दुकानों में न जाने से लोगों की नशे की लत छूट जाय तो बड़ी अच्छी बात है। लेकिन लती की लत कहीं छूटती है? वह दुकान पर न जाय तो चोरी-छिपे किसी-न-किसी तरह दोगुने-चौगुने दाम देकर, सजा काटने पर तैयार होकर अपनी लत पूरी करेगा। ऐसा काम क्यों करो कि सरकार का नुकसान अलग हो और गरीब रैयत का नुकसान अलग हो। और फिर किसी-किसी को नशा खाने से फायदा होता है। मैं ही एक दिन अफीम न खाऊँ तो गाँठों में दर्द होने लगे, दम उखड़ जाय और सरदी पकड़ ले।
एक आवाज--शराब पीने से बदन में फुर्ती आ जाती है।
एक शंका--सरकार अधर्म से रुपया कमाती है, उसे यह उचित नहीं है! अधर्मी के राज में रहकर प्रजा का कल्याण कैसे हो सकता है?