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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ


धरिया करते हैं। क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं है कि हम अपने बालकों को धर्मानुसार शिक्षा दें?

जनता-चन्दे से पाठशाला खोलनी चाहिए।

चौधरी-हम पहिले मदिरा छूना पाप समझते थे, अब गाँव-गाँव और गली-गली में मदिरा की दूकानें हैं। हम अपनी गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये गाँजे-शराब में उड़ा देते हैं।

जनता-जो दारू-भाँग पीये, उसे डाँड़ लगाना चाहिए।

चौधरी-हमारे दादा, बाबा, छोटे-बड़े सब गाढ़ी-गंजी पहनते थे। हमारी दादी, नानी चरखा काता करती थीं। सब धन देश में रहता था। हमारे जोलाहे भाई चैन की बंशी बजाते थे। अब हम विदेश के बने हुए महीन रंगीन कपड़ों पर जान देते हैं। इस तरह दूसरे देशवाले हमारा धन ढो ले जाते हैं, बेचारे जुलाहे कंगाल हो गये। क्या हमारा यही धर्म है कि अपने भाइयों की थाली छीनकर दूसरों के सामने रख दें।

जनता-गाढ़ा कहीं मिलता ही नहीं।

चौधरी-अपने घर का बना हुआ गाढा पहनो, अदालतों को त्यागो, नशेबाजी छोड़ो, अपने लड़कों को धर्म-कर्म सिखाओ, मेल से रहो, बस यही स्वराज्य है। जो लोग कहते हैं कि स्वाराज्य के लिए खून की नदी बहेगी, वे पागल हैं, उनकी बातों पर ध्यान मत दो।

जनता यह बातें बड़ी चाह से सुनती थी, दिनोंदिन श्रोताओं की संख्या बढ़ती जाती थी। चौधरी सब के श्रद्धाभाजन बन गये।

भगत भी राजभक्ति का उपदेश करने लगे-

'भाइयो, राजा का काम राज करना और प्रजा का काम उसकी आज्ञा पालन करना है, इसी को राजभक्ति कहते हैं और हमारे धार्मिक ग्रन्थों में हमें इसी राजभक्ति की शिक्षा दी गयी है। राजा‌