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दो बैलों की कथा


दिया, यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आया। सँभलकर उठा और फिर मोती से भिड़ गया। मोती ने देखा-खेल में झगड़ा हुआ चाहता है, तो किनारे हट गया।

( ४ )

अरे! वह क्या! कोई साँड़ डौंकता चला आ रहा है। हाँ, साँड़ ही है। वह सामने आ पहुँचा। दोनों मित्र बगलें झॉक रहे हैं। साँड़ पूरा हाथी है। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है; लेकिन न भिड़ने पर भी तो जान बचती नहीं नजर आती। इन्हीं की तरफ आ भी रहा है। कितनी भयकर सूरत है!

मोती ने मूक भाषा में कहा-बुरे फंँसे। जान कैसे बचेगी। कोई उपाय सोचो।

हीरा ने चिन्तित स्वर में कहा-अपने घमंड में भूला हुआ हैं। आरजू-विनती न सुनेगा।

'भाग क्यों न चलें।'

'भागना कायरता है।'

'तो फिर यहीं मरो। बन्दा तो नौ-दो ग्यारह होता है।'

'और जो दौड़ाये?'

"वो फिर कोई उपाय सोचो जल्द!'

'उपाय यही है कि उस पर दोनो जनें एक साथ चोट करें। मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी, तो भाग खड़ा होगा। ज्योंही मेरी ओर झपटे तुम बगल से उसके पेट में सींग धुसेड़ देना। जान जोखिम है; पर दूसरा उपाय नहीं है।'

दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। साँड़ को कभी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजुरबा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्योंही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। साँड़ उसकी तरफ मुड़ा, तो हीरा ने रगेदा। साँड़ चाहता था कि एक एक