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प्रेमचन्द की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ


उमड़ पड़ा। जिस वक्त जनाजा उठा, लाख-सवा लाख आदमी साथ थे। कोई आँख ऐसी न थी, जो आँसुओं से लाल न हो।

बीरबलसिह अपने कांस्टेबलों और सवारों को पाँच-पाँच गज के फासले पर जुलूस के साथ चलने का हुक्म देकर खुद पीछे चले गये। पिछली सफों मे कोई पचास गज तक महिलाएँ थीं। दारोगा ने उनकी तरफ ताका। पहली ही कतार में मिट्ठन बाई नजर आयी। बीरबल को विश्वास न आया। फिर ध्यान से देखा, वही थीं। मिट्टन ने उनकी तरफ एक बार देखा और आँखें फेर ली; पर उनकी एक चितवन में कुछ ऐसा धिक्कार, कुछ ऐसी लज्जा, कुछ ऐसी व्यथा, कुछ ऐसी घृणा भरी हुई थी कि बीरबल सिह की देह में सिर से पाँव तक सनसनी-सी दौड़ गयी। वह अपनी दृष्टि में कभी इतने हल्के, इतने दुर्बल, इतने जलील न हुए थे।

सहसा एक युवती ने दारोगाजी की तरफ देखकर कहा-कोतवाल साहब, कहीं हम लोगों पर डण्डे न चला दीजिएगा! आपको देखकर भय हो रहा है।

दूसरी बोली-आप ही के कोई भाई तो थे, जिन्होंने उस दिन माल के चौरस्ते पर इस वीर पुरुष पर आघात किये थे!

मिट्ठन ने कहा-आपके कोई भाई न थे, आप खुद थे।

बीमियों के मुँहों से आवाजें निकलीं-अच्छा, यह वही महाशय हैं? महाशय, आपको नमस्कार है! यह आप ही की कृपा का फल है कि आज हम भी आपके डण्डे के दर्शनों के लिए आ खड़ी हुई हैं!

बीरबल ने मिट्ठन बाई की ओर आँखों का भाला चलाया; पर मुँह से कुछ न बोले।

एक तीसरी महिला ने फिर कहा-हम एक जलसा करके आपको जयमाल पहनायेंगे और आपका यशोगान करेंगे।