लड़के से उससे कोई सम्बन्ध न होगा।'
'अगर मैं जानता आपकी ऐसी नीयत है, तो मैं भी बीवी-बच्चों के नाम से टिकट ले सकता था।'
'यह आपकी गलती है।
'इसी लिए कि मुझे विश्वास था, आप भाई हैं।'
'यह जुआ है, आपको समझ लेना चाहिए। जुए की हार-जीत का खानदान पर कोई असर नहीं पड़ सकता; अगर आप कल को दस-पाँच हजार रेस मै हार आयें, तो खानदान उसका जिम्मेदार न होगा।'
'मगर भाई का हक दबाकर आप सुखी नहीं रह सकते।'
'आप न ब्रह्मा हैं, न ईश्वर, न कोई महात्मा।'
विक्रम की माता ने सुना कि दोनों भाइयों में ठनी हुई है औरम ल्लयुद्ध हुआ चाहता है, तो दौड़ी हुई बाहर आयीं और दोनों को समझाने लगीं।
छोटे ठाकुर ने बिगड़कर कहा-आप मुझे क्या समझाती हैं, उन्हें समझाइए, जो चार-चार टिकट लिये बैठे हुए हैं। मेरे पास क्या है, एक टिकट। उसका क्या भरोसा! मेरी अपेक्षा जिन्हें रुपये मिलने का चौगुना चांस है, उनकी नीयत बिगड़ जाय, तो लज्जा और दुःख की बात है।
ठकुराइन ने देवर को दिलासा देते हुए कहा-अच्छा, मेरे रुपये में से आधे तुम्हारे। अब तो खुश हो।
बड़े ठाकुर ने बीवी की जबान पकड़ी-क्यों आधे लेंगे? मै एक घेला भी न दूंगा। हम मुरौवत और सुहृदयता से काम लें, फिर भी इन्हें पाँचवें हिस्से से ज्यादा किसी तरह न मिलेगा। आधे का दावा किस नियम से हो सकता है, न बौद्धिक, न धार्मिक, न नैतिक।
छोटे ठाकुर ने खिसियाकर कहा-सारी दुनिया का कानून आप ही तो जानते हैं!