मिठाई को खूब रस ले-लेकर खायेंगे। मै गया को लेकर डाक बँगले पर आया और मोटर में बैठकर दोनों मैदान की ओर चले। साथ में एक कुल्हाड़ी ले लो। मैं गंभीर भाव धारण किये हुए था। लेकिन गया इसे अभी तक मजाक ही समझ रहा था। फिर भी उसके मुख पर उत्सुकता या आनन्द का कोई चिन्ह न था। शायद वह हम दोनों में जो अन्तर हो गया था, वही सोचने में मगन था।
मैने पूछा-तुम्हें कभी हमारी याद आती थी गया? सच कहना।
गया झेंपता हुआ बोला-मैं आपको क्या याद करता हुजूर, किस लायक हूँ। भाग में आपके साथ कुछ दिन खेलना बदा था, नहीं मेरी क्या गिनती।
मैने कुछ उदास होकर कहा-लेकिन मुझे तो बराबर तुम्हारी याद आती थी। तुम्हारा वह डण्डा, जो तुमने तानकर जमाया था, याद है न?
गया ने पछताते हुए कहा-वह लड़कपन था सरकार, उसकी याद न दिलायो।
‘वाह! वह मेरे बाल-जीवन की सबसे रसीली याद है। तुम्हारे उस डण्डे में जो रस था, वह तो अब न आदर-सम्मान में पाता हूँ, न धन में। कुछ ऐसी मिठास थी उसमें कि आज तक उससे मन मीठा होता रहता है।
इतनी देर में हम बस्ती से कोई तीन मील निकल आये हैं। चारों तरफ सन्नाटा है। पश्चिम की ओर कोसों तक भीमताल फैला हुआ है, जहाँ आकर हम किसी समय कमल पुष्प तोड़ ले जाते थे और उसके झुमक बनाकर कानों में डाल लेते थे। जेठ की सन्ध्या केसर में डूबी चली आ रही है। मैं लपककर एक पेड़ पर चढ़ गया और एक टहनी काट लाया। चट-पट गुल्ली-डण्डा बन गया।
खेल शुरू हो गया। मैंने गुच्ची में गुल्ली रखकर उछली। गुल्ली डण्डा के सामने से निकाला गयी। उसने हाथ लपकाया जैसे मछली पकड़