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प्रेरणा


दो-चार निष्कपट बातें उसके दिल पर असर कर जाती; मगर इन्हीं खोये हुए अवसरों का नाम तो जीवन है। गाड़ी मन्द गति से चली। लड़के कई कदम तक उसके साथ दौड़े। मै खिड़की के बाहर सिर निकाले खड़ा था। कुछ देर तक मुझे उनके हिलते हुए रूमाल नजर आये। फिर वह रेखाएँ आकाश में विलीन हो गयी; मगर एक अल्पकाय मूर्ति अब भी प्लेटफार्म पर खड़ी थी। मैने अनुमान किया, वह सूर्यप्रकाश है। उस समय मेरा हृदय किसी विकल कैदी की भाँति घृणा, मालिन्य और उदासीनता के बन्धनों को तोड़-तोड़कर उसके गले मिलने के लिए तड़प उठा।

नये स्थान की नयी चिन्ताओं ने बहुत जल्द मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया। पिछले दिनों की याद एक हसरत बनकर रह गयी। न किसी का कोई खत आया, न मैंने कोई खत लिखा। शायद दुनिया का यही दस्तूर है। वर्षा के बाद वर्षा की हरियाली कितने दिनों रहती है? संयोग से मुझे इगलैण्ड में विद्याभ्यास करने का अवसर मिल गया। वहाँ तीन साल लग गये। वहाँ से लौटा, तो एक कालेज का प्रिंसिपल बना दिया गया। यह सिद्धि मेरे लिए बिलकुल आशातीत थी। मेरी भावना स्वप्न में भी इतनी दूर नहीं उड़ी थी; किन्तु पद-लिप्सा अब किसी और भी ऊँची डाली पर आश्रय लेना चाहती थी। शिक्षा मन्त्री से रब्त-जब्त पैदा किया। मन्त्री महोदय मुझ पर कृपा रखते थे; मगर वास्तव में शिक्षा कि मौलिक सिद्धान्तों का उन्हें ज्ञान न था। मुझे पाकर उन्होने सारा भार मेरे ऊपर डाल दिया। घोड़े पर सवार वह थे, लगाम मेरे हाथ में थी। फल यह हुआ कि उनके राजनैतिक विपक्षियों से मेरा विरोध हो गया। मुझ पर जा-बेजा आक्रमण होने लगे। मै सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा का विरोधी हूँ। मेरा विचार है कि हरएक मनुष्य को उन विषयों में ज्यादा स्वाधीनता होनी चाहिए, जिनका उनसे निज