तो वह सीधे पुरोहितजी के घर पहुँचा। पुरोहितजी पूजा पर बैठे सोच रहे थे-कल ही मुकदमा की पेशी है, और अभी तक हाथ में कौड़ी भी नहीं-जजमानों में कोई सॉस भी नहीं लेता। इतने में महादेव ने पालागन की। पंडितजी ने मुँह फेर लिया। यह अमंगल-मूर्ति कहाँ से आ पहुंँची, मालूम नहीं, दाना भी मयस्सर होगा या नहीं। रुष्ट होकर पूछा-'क्या है, जी, क्या कहते हो? जानते नहीं, हम इस समय पूजा पर रहते हैं?” महादेव ने कहा-'महाराज, आज मेरे यहॉ सत्यनारायण की कथा है।’
पुरोहितजी विस्मित हो गये। कानों पर विश्वास न हुआ। महादेव के घर कथा का होना उतनी ही असाधारण घटना थी, जितनी अपने घर से किसी भिखारी के लिए भीख निकालना। पूछा-'आज क्या है?’
महादेव बोला-'कुछ नहीं, ऐसी ही इच्छा हुई कि आज भगवान्की कथा सुन, लूँ।
प्रभात ही से तैयारी होने लगी। बैदों और अन्य निकटवर्ती गाँवों में सुपारी फिरी। कथा के उपरान्त भोज का भी नेवता था। जो सुनता, आश्चर्य करता-'यह आज रेत में दूब कैसे जमी!'
सन्ध्या समय जब सब लोग जमा हो गये, पंडितजी अपने सिहासन पर विराजमान हुए, तो महादेव खड़ा होकर उच्च स्वर में बोला-
'भाइयो, मेरी सारी उम्र छल-कपट में कट गयी। मैंने न जाने कितने आदमियों को दगा दी, कितना खरे को खोटा किया, पर अब भगवान्ने मुझ पर दया की है, वह मेरे मुँह की कालिख मिटाना चाहते हैं। मैं आप सभी भाइयों से ललकारकर कहता हूँ कि जिसका मेरे जिम्मे जो कुछ निकलता हो, जिसको जमा मैने मार ली हो, जिसके चोखे माल को खोटा कर दिया हो,वह आकर अपनी एक-एक कौड़ी चुका ले। अगर