पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१
हमारे देश की भाषा और आकर्षक

द्रव्य की हानि सहन की है। वे निज मातृ भाषा के प्रति उस्कृष्ट हित के लिये भी एक बार कुछ क्लेश स्वीकार करें, विशेष आशा हम आनरेबल श्रीमान राजा रामपाल सिंह वीरेश से करते हैं कि जिन्हें इस विषय में पूर्ण अनुराग है, और जिसके वे व्रती हैं; जिनके लिद उनका देश अनुगृहीत है, एवम् जिस कारण उनका सुयश उनके अनेक सहयोगियों की स्पर्धा का कारण है।

१९५२-वै॰ ना॰ नी॰