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स्थानक समवाद

माला, २] आनन्द कादम्बिनी फाल्गुन तथा चैत्र वि॰ सं॰ १९४२ [मेघ ८९

(१)

दिव्य देवी श्री महाराणी बड़हर लाख झंझट झेल, और चिरकाल पर्यन्त बड़े बड़े उद्योग और मेल से दुःख के दिन सकेल, अचल कोर्ट का पहाड़ ढकेल फिर गद्दी पर बैठ गई ईश्वर का भी क्या खेल है, कि कभी तो मनुष्य पर दुःख की रेला पेल, और कभी उसी पर सुख की कुलेल है।

(२)

श्रीमान् महाराज—लेफ्टेनन्ट गवर्नर भी आये, शिकार के बहाने जंगल में भी मंगल मचाये। पहाड़ों पर भी बाजारैं लगी, स्थानिक राजकर्मचारियों के खौरवाहियाँ जगीं कुछ लोग जो हरखाये तो अनेक बेगार से चिल्लाये नगर के टाउन हाल में ऐड्स का सदबीर भी हुआ।

 

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