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प्रेमघन सर्वस्व

का एक दिन और ३० दिन का एक महीना तथा १२ मास का १ वर्ष होता है। इसी रीति से नवों प्रकार के मानों में वर्ष मासादिक बना लेना चाहिए।

जैसे कि मेषादि राशि चक्र का भ्रमण जितने दिन में सूर्य पूर्ण करते हैं, उसको सौर वर्ष कहते हैं, उसका द्वादशांश सौर मास, मास का त्रिशांश मौर दिन, दिन का षष्ट्यांश सौर घटी, सौर घटी का षष्ठ्यांश सौर पल होता है। इसी प्रकार पूर्व परिभाषा के अनुसार समस्त मानो में जानना। सौर वर्ष ही देव और असुरों का अहोरात्र है, परन्तु जो (उत्तरायण) देवों का दिन है, वही असुरों की रात्रि है। इस प्रकार देवों के ३६० दिन का एक दैव वर्ष होता है। अमावस्या से अमावस्या पर्यन्त काल चान्द्र मास कहलाता है। चान्द्रमास ही पैत्र अहोरात्रि कहलाता है। (अर्थात् कृष्ण पक्ष दिन और शुक्ल पक्ष रात्रि)। दो सूर्योदय का अन्तर अर्थात् सूर्योदय से सूर्योदयपर्यन्त काल सावन अहोरात्र कहा जाता है। अश्विन्यादि नक्षत्र भोगकाल नाक्षत्र मास है। और वृहस्पति के राशि चक्र भोगकाल को वार्हस्पत्य वर्ष कहते हैं। यह बारह सौर वर्ष का एक वर्ष होता है। यों ही १००० महायुग का एक ब्राह्म दिन होता है। मनुष्य मात्र उक्त चार मानों से मिश्रित होता" है क्योंकि लोक में चार ही मान से सब कार्य किये जाते हैं, अर्थात्—सौर, चान्द्र, सावन और नाक्षत्र।

वर्ष अयन, ऋतु और युगादिक सौर मान से, मास और तिथि चान्द्र मान से, व्रतोपवासादि सावन मान से, और घटिकादि नाक्षत्र मान से प्रवृत्ता होते हैं।

४३२००० सौर वर्ष कलियुग का भोग है, उसका दूना वापर का, तिगुना त्रेता, सौर चौगुना सतयुग का ये चारो युग मिलकर अर्थात् ४३२०००० और वर्ष का एक महायुग होता है। ऐसे ही ७१ महायुग का एक मन्वन्तर होता है। एक ब्राह्म दिन में १४ मनु होते, अर्थात् १४ मन्वन्तर का एक ब्राह्म दिन होता है। इसी को कल्प वा प्रलय-काल भी कहते है, जिसके कि श्रारम्भ से ग्रहों का चलना प्रारम्भ होता, और अन्त में समाप्त होता है। ऐसे १०० वर्षों की ब्रह्मा की आयु है जिसके समाप्त होने ही को महाप्रलय भी कहते हैं।

धर्मशास्त्र के कालमान से इसमें कुछ विरोध पड़ता है और पुराणों के मत भी भिन्न है। परन्तु लोक में विशेषतः इन बड़े मानों से कार्य नहीं