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प्रेम घन सर्वस्व

से सब प्रकार के प्रबन्ध में तत्पर हुआ; जो यह आज्ञा हुई थी कि तू सारा देश देख कर शीघ्र समय और देश दशा की विज्ञाप्ति कर! अतएव समस्त भूमि भ्रमण कर देखा तो हर देश को हर तरह सुख से भरा सुहावना पाया, प्रजा समूह प्रसन्न मन गुनगान कर महाराज को आशीर्वाद देती हैं अतएव सविस्तर समाचार यों निवेदन है, कि गवंई गाँव में किसानों के खेतों में धान, जड़हन, सादां, कांकुन, कोदो, मकरा, मकाई, ज्वार, बाजरा, मूंग, मोथा, उरद, इत्यादि सब शस्य साल भरसे भी अधिक सब के खाने भर को भरपूर हैं; राज कर देने के अर्थ ऊख, कतारे, और पौड़े बहुत हुए, हैं, गृहस्थी और किसनई के कार्य के निर्वाहार्थ सनई और पटूता भी कम नहीं, शीतकाल में शीत से अभीत होने भर को कपास और नमी भी अच्छा है, तेल के लिए तिलभी और एरन्ड भी कम नहीं, अतिथि के आगमन और मेहमानों की मेहमानदारी तथा बड़े आदमियों के सत्कार और नज्र के लिए अच्छे जड़हनों की भी क्यारियाँ लहराती कि जिनमें 'रानीकाजल', राजगोल, राजहंस, शकर चीनी, कनकजीर, नौग्राब पसन्द, बासमती इत्यादि उत्तम हैं; व्यापारी कृषिकार भी नील की, मील की मील क्यारी देख मारे मोद के फूले नहीं समाते, वोही कोयरी और काछी भी अच्छी तरकारी और भाजी देख राजी हुए अपनी श्राराज़ी में से खीरा, फूट, पिंहटा, परवर, खेकसा, कुनरू, कुहंडा, केला, लौश्रा, नेनुश्रा, तरोई, भिण्डो, भाँटा, भटेस, सेम, सेमा, केवांच, बोड़ा, खालिनी, मरसा, सुथनी, गर्जा, शकरकन्द, जिमीकन्द, अल्वी, वराडा, इत्यादि खोदते, तोड़ते, धोले, सजाते, बेचने के लिए जाते। ग्रामीन दीन जनों की स्त्रियाँ नवीन कोपलें, चकौड़ की तोड़ और दुद्धी, पथरी, पोई, और अंठगंठवा इत्यादि के शाक ऊसरों से नोच खसोट और खोट खोट लाती, इसी रीत तालों में से भी करेमुश्रा और गिड़नी, बनचौरैया, अमलोनी; तथा गाती हुई खेतों में निगती भी लहेसुत्रा, सुरुश्रारी इत्यादि के शाक लिए आती, कि आनन्द से सपरिवार खातीं और एकपंथ दो काज करती प्रमुदित है; धन मानों की बाटिकानों और बगाचों में ग्राम, इमली, अनार, केले, कैत, कटहर, बड़हर, नारियल, नीबू, नारङ्गी, रायकरौंदा, अमला इत्यादि के वृक्ष फलों से लदे ऐसे गरुपा गये कि फेंकने को भी नहीं सिराते. कहाँ तक कहै कि रविशां पर की महदिवाँ भी फलवती हो ऐसी फबी है कि मानों कुरङ्गलोचनी कामनियों के कजसे कलित हाथों पर की बुनकीदार मिहदी लगी चित्रताई की छवि छीन ली। उपवनों में केवटी