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नागरी के समाचार पत्र और उनकी समालोचना

यद्यपि सबी विषयों की समालोचना करनी समाचार पत्रों का एक मुख्य धर्म्म वा अंग है, परन्तु साहित्य संबन्धी समालोचना उसमें भी एक विशेष आवश्यक वस्तु है। क्योंकि प्रथम तो इससे कि सामयिक पत्रों के द्वारा सामान्यतः सबी पत्र पाठकों को किसी नवीन पुस्तक वा पत्र के प्रकाशित होने की विज्ञप्ति हो जाती और बिना कौड़ी व्यय के पुस्तक प्रणेता को एक बार विज्ञापन देने का लाभ हो जाता है। अधिकतर पुस्तकें भी केवल इसी अभिप्रायः से समाचारपत्र सम्पादकों के समीप पाती न कि सच्ची समालोचना कराने के अभिप्राय से और यही कारण है कि समाचार पत्रों ने भी एक प्राप्ति स्वीकार का स्तम्भ बनाया है, कि जिससे प्राप्ति स्वीकार करके पुस्तक प्रेषणकर्ता के ऋण से मुक्त हो जाते हैं। वास्तव में बहुतेरी पुस्तके ऐसी हो होती, वरञ्च अनेक तो इसके भी योग्य नहीं, परन्तु अवश्य कुछ ऐसी भी आजाती कि जिनपर समालोचना की आवश्यकता होती, और उनमें कुछ की समालोचना सम्पादक की योग्यता, श्रद्धा और अवकाश के अनुसार लिखी भी जाती अब इसके आगे का अख्यान सामान्य वस्तु को छोड़ कर विशेष का विषय है, जिसकी चर्चा यहाँ अप्रयोजनीय है। रिव्यू अर्थात् समालोचना का अर्थ है पक्षपात रहित होकर न्याय पूर्वक किसी पुस्तक के यथार्थ गुण दोष की विवेचना करना और उससे ग्रन्थकर्ता को विशप्ति देना है क्योंकि रचित ग्रन्थ के रचना के गुणों की प्रशंसा कर रचयिता के उत्साह को बढ़ाना, एवम् दोषों को दिखला कर उसके सुधार का यत्न बताना कुछ न्यून उपकार का विषय नहीं है। परन्तु यह एक कठिन वस्तु भी है, क्योंकि प्रथम तो किसी अच्छे ग्रन्थ की समालोचना करने के लिये समालोचक की योग्यता उसके ग्रन्थ कर्ता से अधिक अपेक्षित है, दूसरे उसे भी उतने ही सावधानी और परिश्रम पूर्वक उसे देखने की आवश्यकता है जितनी उसके ग्रन्थकर्ता को उसके संशोधन में होती है। इसी से बिना इतने के तो उसका सुसम्पन्न होना ही दुर्लभ है, रहा यह कि मतभेद आग्रह पक्षपात, ईर्षा, द्वेष, शुश्रूषा, संकोच और दनाव।