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प्रेमघन सर्वस्व

जिस की संख्या भी हमारी भाषा में अति अधिक है इसी से उन के उदाहरण नहीं दिये।

कवित्त जैसे—

यार को मिला दे या तो यार को दिखा दे।
कवि राम खत लिख दूतावे जिंदगी गुलामी का॥

इन सब के सुनने से यह नहीं बोध होता कि यह हमारी भाषा की कविता नहीं है, परन्तु आजकल की वनी नागरी कवितायें सुनने में बहुत ही विभिन्न और अजनबी सी जंचती हैं। आप कहैंगे कि नहीं जिन्हें तुम लिख गये हो, उसमें व्रजभाषा की छाया खाती और कहीं कहीं उर्दू या संस्कृत की भी झलक आती है। यद्यपि ऐसा तो नहीं है, तौभी आप उसे निकाल सकते हैं।

अस्तु, खरी बोली की कविता वा गद्य का उत्तम उदाहरण लोग रानी केतकी की कहानी में देख सकते हैं। छंदों से उसके हमें अवश्य ही कुछ सम्बन्ध न रखना चाहिये। पर भाषा तो उस की अति रम्य है। जैसे,—

रानी को बहुत सी बेकली थी। कव सूझती कुछ भली बुरी थी॥
चुपके चुपके कराहती थी। जीना अपना न चाहती थी।
कहती थी कभी अरी मदनबान। है आठ पहर सुके वही ध्यान॥
यहाँ प्यास किसे भला किसे भूख। देखूंहूँ वही हरे हरे रूख॥