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प्रेमघन सर्वस्व

तासों कारे कारे शब्दहु पर हैं वारे ॥
अरु बहुधा कारन के हैं आधारहि कारे।
विष्णु कृष्ण कारे, कारे सेसहु जग धारे॥
कारे काम, राम, जलधर जल बरसन वारे।
कार लागत ताही सन कारन को प्यारे॥
तासों कारे ह्वै तुम लागत औरहु प्यारे।
यातें नीको है तुम कारे जाहु पुकारे॥
यहै असीस देत तुम कह मिलि हम सब कारे।
सफल होहिं मन के सब ही संकल्प तुम्हारे॥
वे कारे धन से कारे जसुदा के बारे।
कारे मुनि जन के मन मैं नित बिहरन हारे॥
मङ्गल करें सदा भारत को सहित तुमारे।
सकल अमङ्गल मेटि रहैं आनँद विस्तारे॥

महाराणाओं का अपने नाम के साथ इस शब्द का स्वीकार के मुसल्मानों ही के अर्थ था, जैसे कि बादशाह, यह उनकी बराबरी से सूचित करने के अर्थ उन्हीं के भाषा का शब्द रक्खा गया, "हिन्दू पति बादशाह" वहाँ पर केवल "यावदार्य-कुल-कमल-दिवाकर वा प्रकाशक" का मानो अनुवाद था। फ़ारसी उर्दू में आर्य शब्द शुद्ध शुद्ध लिखा भी नहीं जा सकता। अन्य भाषा में हिन्दू शब्द भी इतना बुरा नहीं जंचता, जितना कि हमारी भाषा में। अस्तु, उसी हिन्द अथवा हिन्दू से यह हिन्दी शब्द भी उन्हीं लोगों से व्यवहृत किया गया था जिसका अर्थ हिंदोस्तान का निवास वा भाषा है। पहले मुसल्मान जब इस देश में पाये अपनी भाषा के अन्य शब्दों के साथ इसे भी अपने साथ लाये। इस से आगे यहाँ इसका नाम व निशान भी न था, इस देश की भाषा मात्र को हिन्दी कहने लगे, चाहे वह पंजाबी होती व गुजराती, भाषा वा ब्रजभाषा, अथवा राजपुताने की का मध्य देश निवासियों की बोली। सारांश उस समय भी न इसमें देश वा स्थान विशेष की विशेषता मानी गई थी और अब भी इस नाम के साथ कोई उचित विशेषता नहीं लग सकती, क्योकि भारत के सबी देश और प्रान्त की हिंदी भिन्न भिन्न प्रकार की माननी पड़ेगी। हमारे मध्य देश के भिन्न भिन्न अञ्चलों में भी जो अनेक प्रकार की स्थानिक भाषायें बोली जाती हैं, उन सबी को हिंदा ही कहते और कहने