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प्रेमघन सर्वस्व
सं॰ | प्रा॰ | भा॰ | सं॰ | प्रा॰ | भा॰ |
बानुल्ले | बाउलो | बावला | शय्या | सेज्जा | सेज |
उपाध्यायः | उवझाओ | ओझा | किन्तु | किणो | क्यों |
शिथिलः | सिदिलो | ढीला | कृष्ण | कण्ह | कान्ह |
कातरः | काहल | काहिल | कथम् | किवं, केम | किमि |
कुटीर | कुड्ल्ली | कटोरी | पुत्र | पूत | पूर्ण |
अन्तःपुर | अंदेउर | अन्दर | आत्मीयन | अपण | अपना |
गर्त | गढ्ढो | गढ़ा | पृष्टः | धिट्ठो | ढीट |
मृतिका | मटिआ | मट्टी | मृत्युः | मिच्च | मीच |
बृद्ध | बुढ्ढो | बुढ़ा | वृक्षः | रुवखो | रूख |
म्लाघा | सराहा | सहारा | स्फोटकः | फोड़ाओ | फोड़ा |
श्मश्रु | मल्लू | मस | पदाति | पाइको | पायक |
गर्भितः | गविभणं | गामिनी | प्रभूतः | बहुत्त | ् बहुत |
अयन | अवर | और | थोक्क | थोक | |
कर्म्मः | कन्न | काम | कर्ण | कान्न | कान |
हस्त | हथ्थ | हाथ | वार्ता | बत्त | दांत |
अद्य | अज | आज | अग्रे | आग्गे | आगे |
अग्नि | आगो | अगिन | दुग्ध | दुद्धी | दूध |
घृतम् | घिअम् | घी | नृत्य | णच्च | नाच |
मेघः | मेही | नेह | पुस्तकम् | पोत्थो | पोथी |
भागिनी | बहिणी | बहिन | गम्भीरम | गहिरम | गहीरा |
दुहिला | धीश्रा | धी | यष्टिः | लही | लाठी |
हमारी मातृभाषा का परम्परागत यथार्थ नाम भाषा ही है, ठीक जैसे कि अनादि काल से चले आते हमारे धर्म का नाम धर्म है। अन्य जितने धर्म हैं पंथीएक एक संज्ञा विशेष है। जैसे बौद्ध, जैन, वैष्णव, शैव, शाक्त, अनेकपंथी, या मुसलमान, वृस्तान आदि। आज कल जब बहुत विभेद बढ़ा, तोनिज समूह के समान प्रतिद्वद्वियों के सन्मुख कुछ लोग उसे सनातन धर्म कहते
हैं, परन्तु वह भी समूह वाची सा हो गया है। ऐसे ही भाषा शब्द निज सनादुल्य है। पहिले देववाणी भी केवल भाषा ही कहलाती थी।[१]
- ↑ पतंजलि ने महाभाष्य में संस्कृत शब्दों को वैदिक ही कहा है—जैसे "कलां शब्दानां? लौकिकानां वैदिकानां च"