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प्रेमघन सर्वस्व

समालोचना में आई कहनी अनकहनी कहने की क्षमा माँगते हुये ईश्वर से इस जातीय महासभा के सब विघ्नों को दूर कर आगामि से इसको पूर्ण उन्नत और सफल मनोरथ करने की प्रार्थना करते हैं।

अपरञ्च—


होय सत्य जो प्रेमघन देत आज आसीस।
दया बारि बरसत रहै भारत पैं' जगदीश॥

माघ १९६४ बैक्रमीय