पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१४
प्रेमघन सर्वस्व

तुम लखहु, ताके सयन हित
करियै जतन अति वेगहीं॥
निज प्रमाद पाला परथो, जहँ तहँ धीरज धारि।
छमा बारि सीचिय तुरत, आगत दोष निवारि॥
राज कोप के उपल सों, सावधान अति होय।
रहियै रञ्चक बीच जो, सकत नाश करि सोय॥,

काशी की काँग्रेस में उस भविष्य गर्म दल के संग जो सब ने स्वाभाविक सहानुभूति दिखलाई और उनके अमर्ष-जनित हठपूर्ण स्वदेशी व्रत और तिरस्कार प्रदर्शनात्मक बहिष्कार के प्रस्ताव को प्रच्छन्न भाव से स्वीकार किया तो गर्म दल अपनी विजय दुन्दभी बजाता अधिक उत्साहित होकर कठिन दुःख दुर्ग को तोड़ता, सहसा काँग्रेस के सिंहासन पा स्वयम् अकेला जा बैठने का प्रयासी हो कलकत्ते की काँग्रेस में आड़े आ पड़ा और लड़झगड़-रगड़ कर उसके अर्ध मार्ग पर आसीन होई तो गया। अर्थात् यहाँ उसने विधिपूर्वक एक द्वितीय दल के आकार में परिणत हो निज प्राबल्य की घोषणा कर अपने उद्दिष्टत कार्यों की धूम सी मचा दी। जिससे उस काँग्रेस का जो वर्ष भर पड़ी सोया करती थी, मानो एक अविराम चक्र सा चलने लगा।

यद्यपि अनेक राज्याधिकारियों की आँखों में काँटे से खटकने वालों, उनके कोपानल में जल कर भी ऐंठन न छोड़ने वालों की दशा पुराने अथवा अवशिष्ट नर्म दल वालों के आतङ्क का कारण हुई। किन्तु, उन्हें यह भी आशङ्का हो चली कि अकेली गर्म ही दल की काँग्रेस होकर कहीं नवजात सभाबन्दी के विधान की ग्रास न बन जाय कि जैसा व्यवहार आज सहज सुलभ हो रहा है। इधर राज्याधिकारियों के अनेक उत्कट अन्यायाचार से कुपित नवीन दल का अमर्ष और उत्साह लग्गियों ऊपर जा चढ़ा और वे उत्तरोशर और उग्र होते चले गये। इसी प्रकार राजनैतिक द्विधामयी स्थिति में काँग्रेस नागपुर में एकत्रित होने वाली हुई, जिसे कि उभय दल की वर्तमान खींचतान की लड़ाई का अखाड़ा कहना चाहिये और जहाँ सूरत के महाभारत की रंग-भूमि के भयङ्कर दृश्य प्रथम ही से दिखाई पड़ चले कि जिसे देख देश के उदासीन शुभचिन्तक चकित और सशडिल हो चुके थे, तथा जहाँ से परास्त होकर अपने लिये निर्विन स्थाभ अनुमान कर नर्म दल ने सूरत में जा निज बल की परीक्षा आरम्भ की। परन्तु उसे