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नागरी के पत्र और उनकी विवाद प्रणाली

उसे कह सकते, और हम भी उनके मूँ, से सुन अपने को सँभाल सकते हैं। परन्तु क्या जिसे आर्य सन्तान होने का अभिमान हो वह भी ऐसा कह सकता है? अथवा अपने पत्र में प्रकाशित कर सकता है? और क्या समाज उसको क्षमा कर सकता है? आश्चर्य! आश्चर्य! धन्य भारत! और धन्य तेरे भाग्य और सामयिक सन्तान!