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प्रेमघन सर्वस्व

बहुत सी मिलें खड़ी हो गई हैं। एक स्थान और है जहाँ यदि कार्य आरम्भ किया जाय और इस बात की चेष्टा की जाय कि हम अपने देश को अपने ही देश के बने कपड़े घाटा भी सह पहिनायेंगे, जिसका करना हमारे देश के प्रधान धनाढ्यों और राजाओं को कुछ भी दुस्तर नहीं है; तो बहुत ही सुगमता से हो सकता है। हमारा प्रयोजन कराँची बन्दर से है, यदि इस स्थान पर कपड़े की उतनी मिलें खड़ी की जाय जिससे भारतवर्ष के समग्रवासियों के अर्थ हर प्रकार के ओढ़ने पहिनने और बिछाने के कपड़े तैयार किये जा सके, जिससे इन्हें और बाहरी कपड़ों को लेने की आवश्यकता यहाँ न मिलने के कारण न हो, और हर नगरों में इन मिलों के आढ़तिये नियुक्त हो जाँय, तो क्या मैन्चेस्टर कभी भी हमारी बराबरी कर सकेगा? हमारे यहाँ के साधारण धनमानों को अल्पपूँजी तथा कुछ पहिले घाटा सहने के भय से यह करना कठिन होगा। परन्तु यदि यहाँ के महाराज लोग सहमत हो एक बार ऐसा करने पर उद्यत हो जाय तो देश की दरिद्रता छट जाय। नवीन महाराज ग्वालियर का साढ़े तीन करोड़ रूपया जो गवर्नमेण्ट के पास है उसका उन्हें इस कार्य में लगा देना सर्वथा उचित है। वह रूपया गवर्नमेण्ट के पास पड़ा रहने से उनका कोई विशेष लाभ नहीं है जिसके निमित्त वह रक्खा हुआ था अब उससे बह कार्य होना असम्भव है फिर ऐसे उपकारी कार्य में उसे लगा देने से देश का धन बढ़ेगा, महाराज को जो साढ़े तीन रूपया सैकड़ा उससे वार्षिक मिलते हैं, हम लोगों को पूर्ण प्राशा है कि इतना ही उसी से कुछ दिनों में प्रतिमास मिलेंगे। एसेही और सब राजा मिलकर यदि कटिबद्ध हो ८०, ८५करोड़ रूपया कपड़े के निमित्त लगा दें तो देश की दशा कुछ दिनों में और की और हो जाय। कराँची पूर्वीय मैन्चेस्टर और लंकाशायर बन जाय। राजाओं को लाभ हो देश दरिद्रता से छूटै। ऐसे ही और आवश्यक विषयों के भी बनाने का प्रयत्न धीरे धीरे किया जाय। परन्तु पहले कपड़े ही की ओर ध्यान देना उचित है। क्योंकि इसके बिना धनी से दरिद्र तक का काम नहीं चल सकता। यह आवश्यक विषयों में सबसे प्रधान है। परन्तु इतने लिखने से क्या कछ भी लाभ होगा? क्या हम लोग आशा कर सकते हैं कि ऊपर की पंक्तियाँ कभी भी उनके कागोचर हो सकती हैं? क्या इनके सुनने का अब, काश उनमें से बहुतेरों को होगा? क्या कोई हिन्दी समाचार पत्र का सम्पादक उन्हें ऐसे विषय के समझने तक को उद्यत कर सकता है? क्या उन्हें अपने वेप्रमाण निष्प्रयोजन कार्यों से कभी देश का उद्धार करने का अवकाश होगा?