"देहु दिखाय दई मुख चन्द लग्यो अब औधि दिवाकर आयन।" अथवा—"पाज़ेब की झनकार के मुश्ताक है हम लोग। क्यों पर्दानशी! पैर हिलाया नहीं जाता?"
फाल्गुन १९५०