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भारती दरवारजी लाई कर्जन के राजप्रतिनिधित्व में दिल्ली में हुआ था उसका वर्णनात्मक कथोपकथन शैली में उत्कृष्ट निबन्ध है।

इस लेख की विशेषता इसके अन्तर्गत आये हुए चरित्रों के चरित्र का विकास है। श्रीमान् विज्ञानेश्वर शास्त्रा, श्रीमान् करुणा निधान सिंह जू देव नबार बेकरारु छाला बहादुर, लाला डरपोकमल, श्रीमान् भयंकर भट्टाचार्य और वैरिस्टर निशाकर धर, जिनका चरित्र चित्रगा और रहस्य गुप्त गोष्ठी गाथा नामक निबन्ध में भी सन्निविष्ट है।

इस लेख की विशेषता भिन्न भिन्नः पात्रों द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार का भाषा का विन्यास है, उदाहरणार्थ बूढ़े मियाँ से देहलवी उर्दू का फारसी शब्दों से संयुक्त चुस्त और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग जैसे "इनाम" के लिए, "इन आम" यहाँ के लिए "ह्याँ" खिल्लतें के लिए "खिल अतें।" इसी प्रकार बँगालियों द्वारा "प्रणाम" के स्थान पर "प्रोनाम' चौबे जी की बगीची में ब्रजभाषा की कोमलकान्त पदावली शास्त्री जी की भाषा में विशुद्ध हिन्दी का प्रयोग है।

इस लेख के अन्तर्गत व्यंग, परिहास का भी प्राचुय' हैं "जैसे "जिस प्रकार यह सवारी गाड़ी मुसाफिरों से की थी उससे अधिक अवकाश तो कदाचित् मालगाड़ियों में भी होता होगा! हाथरस तक तो हाथ पैर भी हिलाया जा सकता था पर अलीगढ़ से तो मानो गाड़ी गढ़ पर अली के सैनिकों का आक्रमण प्रारम्भ हुआ। गाज़ियाबाद पहुँचते पहुँचते तो ग़ाज़ी बनने का सा दुख हुआ और गाड़ी सिराजुद्दौला की काल कोठरी बन गई।" "विन्ध्याचल स्टेशन पर कालीखोह के निकट पर इंजन ने सीटी दी मानों महाकाली के भय से महिषासुर चिल्लाता और चिग्याडता प्राण लेकर भागा।"

जहाँ तक ज्ञात होता है श्री विज्ञानेश्वर शास्त्री पंडित चन्द्र भूषण जी व्याकरणाचार्य, प्रधानाध्यापक वैदिक पाठशाला सरजूबाग अयोध्या के तत्कालीन आचार्य थे, जिनसे प्रेमघन जी का साख्यभाव था और वे आनन्द कादम्बिनी के लेखकों में से भी थे। सेठ इस्पोकमल मिरजापूर के सेठ खिहारीलाल जी थे जो.उनके बाल सखा तथा अनन्य मित्र। भयंकर भी द खत्री थे। आप से भी उनका दिन प्रति दिन का बागविलास होता और हास परिहास का जमघट क दूसरे के घर पर जमता था। करुणानिधान सिंह आपके सखा श्री कृष्णदेव शरण सिंह जूदेव गोप'भारतेन्दु मंडल के उन व्यक्तियों में से थे जिनका निर्वामन बृटिश राज्याभिकारियों ने